दिनेश द्विवेदी, मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर. प्रभु श्रीराम अपने 14 साल के वनवास के दौरान माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ छत्तीसगढ़ के भरतपुर विकाशखंड के ग्राम हरचौका मवई नदी के किनारे अपना समय बिताये थे. बताया जाता है कि 4 महीने श्रीराम जी इस तट पर माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ रुके थे. तब से इस जगह को सीतामढ़ी के नाम से जाना जाता है. मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ प्रवेश के दौरान यह पहला स्थान है जहां श्रीराम पहुंचे थे. लल्लूराम डॉट कॉम की सीरिज ‘रामलला का ननिहाल’ में आज हम आप को इस जगह का इतिहास और इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में बताने जा रहे हैं. प्रभु श्री राम वनवास काल के समय कैसे यहां पर आए थे और रुक कर उन्होंने क्या-क्या यहां पर अपने हाथों से स्थापित किया इस संबंध में जानकारी देने जा रहे हैं.

मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग के समय जब प्रभु श्रीराम जी को 14 वर्ष की वनवास हुआ था तब वे माता सीता और छोटे भाई लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या से पुरे भारतवर्ष में भ्रमण करते हुए श्रीलंका पहुचे थे. इसी बिच छत्तीसगढ़ के भरतपुर ब्लॉक के ग्राम हरचौका के पास मवई नदी के तट पर रुके थे. बताया जाता है कि तब से इस स्थान का नाम सीता माता के नाम पर सीतामढ़ी रखा गया.

सीता की रसोई

छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर जिला मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ से लगभग 150 किलोमीटर दूर वनांचल क्षेत्र में स्थित इस सीतामढ़ी-हरचौका की इस गुफा में 17 कमरे हैं. इस दिव्य स्थान को सीता की रसोई के नाम से जाना जाता है. गुफा में 12 शिवलिंग स्थापित हैं. लोगों का मानना है कि गुफा में रहते हुए प्रभु श्री राम शिवलिंग की पूजा किया करते थे. जिस मवई नदी के किनारे यह प्राचीन मंदिर है उस का एक तट मध्यप्रदेश की सीमा में आता है. वहीं दूसरा तट छत्तीसगढ़ में आता है.

भगवान विश्वकर्मा ने बनाई थी ये गुफा

वनवास के समय जब भगवान राम ने दक्षिण कौशल (छत्तीसगढ़) में प्रवेश किये थे तो पहला पड़ाव उनका इसी मवई नदी के किनारे हरचौका में था. वहीं लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीराम के आगमन से पूर्व यहां विश्वकर्मा भगवान आये थे और विश्वकर्मा भगवान के द्वारा ही भगवान श्रीराम के रुकने के लिए गुफा का निर्माण किया गया था.

माता सीता की बहनों की प्रतिमा स्थापित

इस जगह पर माता सीता के साथ उनकी 7 बहनों की प्रतिमा स्थापित है. साथ ही श्रीराम और लक्ष्मण जी की प्रतिमा भी स्थापित है. यहां के लोग मवई नदी के जल को गंगा जल के सामान पवित्र मानते हैं. क्योंकि इनका कहना है कि माता सीता नदी के तट पर स्नान किया करती थी. बताया जाता है कि श्रीराम सीता जी और लक्ष्मण जी ने वनवास के 14 साल में से 4 महीने यहीं बिताए थे.

22 जनवरी को श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन सीतामढ़ी हरचौका के राम वन गमन और जनकपुर के पूरे शहर को सजाया जाएगा. राम भगवान के चरण जिस भूमि पर पड़े अब वह एक तीर्थ स्थान बन गया है. इसी तरह हरचौका के इस राम वन गमन परिपथ में पड़ने वाले मंदिर को छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा पर्यटन स्थल बनाकर राम जी की प्रतिमा स्थापित की गई थी. आने वाले 22 जनवरी को भव्य तरीके से पूजा अर्चना कर दीप प्रज्ज्वलित किए जाएंगे.