अमित पांडेय, डोंगरगढ़। मां बम्लेश्वरी मंदिर में पूजा पद्धति को लेकर शुरू हुआ विवाद अब और गहराता जा रहा है. नवरात्र की पंचमी से उठे इस विवाद ने अब नया मोड़ ले लिया है. मंदिर ट्रस्ट समिति ने सर्व हिंदू समाज के साथ मिलकर सोमवार को मौन जुलूस निकाला और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपते हुए प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की. यह जुलूस शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए SDM कार्यालय तक पहुंचा, जहां मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारी, कर्मचारी, दुकानदार और श्रद्धालु शामिल हुए. सभी ने शांतिपूर्वक अपना विरोध दर्ज कराया.

मंदिर ट्रस्ट समिति के अध्यक्ष मनोज अग्रवाल ने मीडिया से कहा कि डोंगरगढ़ अनेकता में एकता का प्रतीक स्थल है, जहां सभी संप्रदायों के लोग सौहार्दपूर्वक रहते हैं. उन्होंने कहा, “मां बम्लेश्वरी मंदिर सनातन और हिंदू आस्था का केंद्र है. हाल ही में नवरात्र में जो घटनाएं हुईं, उनसे मंदिर की मर्यादा का उल्लंघन हुआ है. हमने प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर सख्त कार्रवाई की मांग की है.”

मनोज अग्रवाल ने आगे कहा कि मंदिर ट्रस्ट किसी भी समुदाय को अलग नहीं करता. “हम सबके दर्शनार्थियों का सम्मान करते हैं. सभी को मंदिर की परंपराओं और मर्यादाओं का पालन करना चाहिए, तभी आस्था और विकास दोनों कायम रहेंगे.”

वहीं दूसरी ओर, आदिवासी गोंड समाज ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे केवल अपनी पारंपरिक पूजा कर रहे थे, जो रियासतकालीन परंपरा से जुड़ी है. गोंड समाज के प्रतिनिधियों का कहना है कि “दाई बमलाई की पूजा हमारी परंपरा का हिस्सा है. हर साल पंचमी यात्रा उसी परंपरा के अनुसार निकाली जाती है. मंदिर ट्रस्ट इस विवाद को हिंदू बनाम आदिवासी का रूप देकर समाज में भेदभाव फैलाने की कोशिश कर रहा है.”

गोंड समाज ने यह भी आरोप लगाया कि सर्व हिंदू समाज की बैठक में उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया, जिससे ट्रस्ट की अलगाववादी सोच झलकती है.

बता दें, मां बम्लेश्वरी मंदिर का इतिहास खैरागढ़ राजघराने से जुड़ा हुआ है. मंदिर का निर्माण राजा कमल नारायण सिंह ने करवाया था, जबकि उनके वंशज राजा बीरेन्द्र बहादुर सिंह ने मंदिर के संचालन के लिए ट्रस्ट की स्थापना की थी. अब उसी ट्रस्ट द्वारा उनके पोते राजकुमार भवानी बहादुर सिंह के गर्भगृह में प्रवेश और पूजा को लेकर आपत्ति जताई जा रही है, जिससे राजपरिवार भी इस विवाद के केंद्र में आ गया है.

प्रशासन की ओर से एसडीएम एम. भार्गव ने बताया कि दोनों पक्षों के ज्ञापन प्राप्त हो चुके हैं. उन्होंने कहा, “यह मामला संवेदनशील है. इसे बातचीत और समझौते के माध्यम से सुलझाने का प्रयास किया जाएगा. दोनों पक्षों को आमने-सामने बैठाकर चर्चा कराई जाएगी ताकि गलतफहमियां दूर हों और डोंगरगढ़ की शांति बनी रहे.”

स्थानीय लोगों का कहना है कि डोंगरगढ़ जैसी शांत और धार्मिक नगरी में इस तरह का विवाद चिंताजनक है. कुछ लोगों का मानना है कि व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण इस मामले को जानबूझकर “हिंदू बनाम आदिवासी” का रंग दिया जा रहा है. श्रद्धालुओं और नागरिकों ने शासन-प्रशासन से निष्पक्ष जांच और सख्त कार्रवाई की मांग की है ताकि मां बम्लेश्वरी मंदिर की आस्था और डोंगरगढ़ की धार्मिक एकता बरकरार रहे.

जानें क्या है पूरा मामला

बता दें, डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी मंदिर में नवरात्र की पंचमी पर पूजा पद्धति को लेकर परंपरा और मंदिर प्रशासन के बीच टकराव की स्थिति बन गई. राजघराने से जुड़े राजकुमार भवानी बहादुर सिंह अपने साथ 50 से 60 आदिवासी श्रद्धालुओं के साथ “गढ़ माता” की पारंपरिक पूजा कर रहे थे, जिसे कुछ लोगों ने पशु बलि समझ लिया और प्रशासन ने हस्तक्षेप किया. जांच में बलि की पुष्टि नहीं हुई. 

हम केवल पारंपरिक पूजा कर रहे थे : राजकुमार भवानी बहादुर

राजकुमार ने स्पष्ट किया कि वे केवल अपने कुल की पारंपरिक बैगा पद्धति से पूजा कर रहे थे, बलि नहीं दे रहे थे, और प्रशासन ने गलतफहमी में पूजा में बाधा डाली. उन्होंने कहा कि मंदिर ट्रस्ट को संचालन का अधिकार दिया गया था, मालिकाना हक नहीं, और किसी को उनकी सांस्कृतिक परंपरा में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. 

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