रायपुर. मां लक्ष्मी को धन-संपदा की देवी कहा जाता है. प्रदेश में प्राकृतिक संपदा का भंडार है. प्रचूर मात्रा में वनस्पति, वन, खनिज आदि पर मां लक्ष्मी का आशीर्वाद हमें ऐश्वर्य और समृद्धि प्रदान करता है. राज्य में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी मंदिरों का प्राचीन इतिहास है. यहां ऐसी अनेक दुर्लभ प्रतिमाएं हैं जो शायद कहीं और नहीं हैं. 11वीं से लेकर 14वीं शताब्दी में बने मंदिर में मां लक्ष्मी अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करती हैं. प्रदेश में प्रवेश करने वाले जिलों में ये प्राचीन मंदिर बने हुए हैं.

रतनपुर का मां लखनी देवी मंदिर

बिलासपुर मुख्यालय से करीब 26 किलोमीटर की दूर पर स्थित रतनपुर में मां लक्ष्मी का मंदिर है. जो लखनी देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. बिलासपुर जिले का ही नहीं बल्कि ये पूरे प्रदेश का प्राचीन लक्ष्मी मंदिर है. यहां नवरात्रि, धनतेरस और दीपावली पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. मंदिर में मां लखनी देवी अष्टदल कमल पर विराजमान हैं. यह मंदिर रतनपुर-कोटा मार्ग में इकबीरा की पहाड़ी पर मौजूद है. इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी राजा रत्नदेव तृतीय के प्रधानमंत्री गंगाधर ने 1179ई. में कराया था. यहां भक्त 259 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर पहुंचते हैं. हर गुरुवार को यहां देवी की विशेष पूजा होती है और दर्शन के लिए कई भक्त आते हैं. इस मंदिर की आकृति शास्त्रों में बताए गए पुष्पक विमान की जैसी है और इसके अंदर श्रीयंत्र बना हुआ है. लखनी देवी का स्वरूप अष्ट लक्ष्मी देवियों में से सौभाग्य लक्ष्मी का है.

बस्तर का गजलक्ष्मी मंदिर

छत्तीसगढ़ प्राचीन लक्ष्मी मंदिर में से एक, बस्तर के इंद्रावती नदी से थोड़ी दूर पूर्वी टेमरा के जंगल में स्थित है. इस गांव के भैरव जंगल में पुराने मंदिर का भग्नावशेष है. यहां स्थापित चार फीट ऊंची मां गजलक्ष्मी की प्रतिमा दुर्लभ है. इस मंदिर के गर्भगृह में मां गजलक्ष्मी और महिषासुर मर्दिनी की मूर्तियां हैं. वहीं मंदिर परिसर में गणेश, स्कंदमाता, भैरव, सिंह, नंदी आदि की 12 प्रतिमाएं हैं. दीपावली के दिन यहां लोग दीप जलाने आते हैं. बलुआ चट्टान से निर्मित गजलक्ष्मी की इस दुर्लभ प्रतिमा को पुरातत्व विभाग लगभग 11वीं शताब्दी का बताता है. लेकिन बस्तर के जानकार और ग्रामीण बताते हैं कि ये प्रतिमा नल युग की है. तर्क देते हैं कि 9वीं शताब्दी से 10वीं शताब्दी के मध्य बस्तर में छिंदक नागवंशी राजाओं का वर्चस्व था और वे शिव उपासक थे. नल राजाओं का राजचिन्ह भी मां गजलक्ष्मी ही रहीं हैं. उन्होंने ही गजलक्ष्मी की प्रतिमा बनवाई थीं. बस्तर में नल युग के जितने भी पुराने सिक्के मिले हैं सभी में मां गजलक्ष्मी की आकृतियां हैं.

दुर्ग का त्रिमूर्ति मंदिर

श्रीमद् देवी भागवत पुराण के अनुसार महालक्ष्मी ने ही त्रिदेवों को प्रकट किया है और इन्हीं से ही महाकाली और महासरस्वती ने आकार लिया. विद्या की देवी मां सरस्वती, धन की देवी मां लक्ष्मी, दुष्टों का नाश करने वाली मां काली अपने भक्तों को दर्शन देकर कृतार्थ करती हैं. धमधा का त्रिमूर्ति महामाया मंदिर आदिशक्ति का प्रतीक है. यहां एक ही गर्भगृह में तीन देवियां, माता महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती विराजमान हैं. तीन देवियों के साकार रूप का एक साथ दर्शन कराने वाली ये प्राचीन मूर्ति देश में संभवत: एक मात्र धमधा में ही है. जम्मू के वैष्णोदेवी मंदिर में ये तीनों देवियां पिंडी रूप में विद्यमान हैं. जबकि यहां साकार रूप में है. इस मंदिर का चमत्कार ही है यहां त्रिशक्ति से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद कभी खाली नहीं जाता है.

राजनांदगांव का एकमात्र लक्ष्मी मंदिर

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में मां लक्ष्मी का प्राचीन मंदिर है. लक्ष्मी पूजा के दिन दर्शन यहां करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. मंदिर को 29 साल पहले जीर्णोद्धार कर नया स्वरूप दिया गया. दीपावली पर मां की विशेष महाआरती की जाती है. माता को 56 भोग भी लगाया जाता है. ये राजनांदगांव जिले का एकमात्र महालक्ष्मी मंदिर है, जो आजादी के पहले का है. मंदिर पहले छोटे रूप में था. मंदिर पुराने इतिहास को समेटे हुए है. मंदिर के पदाधिकारियों ने बताया कि मंदिर काफी पुरानी है, पहले ये मंदिर काफी छोटा था.

इसे भी पढ़ें :