Maa Sita Janmotsav 2025: वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के नमवी तिथि यानी आज 5 मई 2025 को माता सीता का जन्मोत्सव पूरे भारत में मान्य जा रहा है. लेकिन बहुत से लोगों के मन में यह सवाल होता है कि माता सीता का जन्म कैसे हुआ? उनका जन्म किसी आम स्त्री की तरह नहीं हुआ था, बल्कि यह एक चमत्कारिक और दिव्य घटना थी, जो आज भी आस्था और रहस्य का विषय है. आइए जानते हैं माता सीता के जन्म की कथा.
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धरती से हुआ था माता सीता का प्रकट होना
पुरानी कथाओं के अनुसार, मिथिला नरेश राजा जनक के राज्य में कई वर्षों तक बारिश नहीं हुई थी. इस कारण पूरे राज्य में अकाल पड़ गया था. राजा जनक ने अपनी प्रजा को इस संकट से बाहर निकालने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ के दौरान राजा जनक स्वयं हल चलाकर भूमि जोत रहे थे. जब वे खेत जोत रहे थे, तभी हल की नोक से भूमि के अंदर कुछ टकराया.
जब उस स्थान की खुदाई की गई, तो वहाँ से एक छोटी बच्ची मिट्टी की पेटी में प्रकट हुई. राजा जनक ने जब उस कन्या को देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गए. वह बच्ची बेहद तेजस्वी और दिव्य प्रतीत हो रही थी. राजा जनक ने उसे अपनी संतान मानकर गोद लिया और उसका नाम रखा गया – सीता, क्योंकि वह सीता (हल की नोक) से प्राप्त हुई थीं (हल से जोती हुई भूमि को सीता कहते हैं).
धरती माता की पुत्री मानी जाती हैं (Maa Sita Janmotsav 2025)
माता सीता को भूमिपुत्री या भूसुता यानी धरती माता की संतान कहा जाता है. उन्हें वैदेही और राजा जनक की पुत्री होने के कारण जानकी जैसे नामों से भी जाना जाता है, – वैदेही क्योंकि वे विदेह (मिथिला) की राजकुमारी थीं और जानकी क्योंकि वे राजा जनक की पुत्री थीं.
विशेष बातें जो माता सीता को बनाती हैं अद्भुत
- माता सीता का जन्म सामान्य रूप से नहीं बल्कि पृथ्वी से उत्पन्न होकर हुआ था.
- उनका जीवन त्याग, साहस और नारी शक्ति का प्रतीक है.
- उन्होंने हमेशा धर्म, मर्यादा और पति के साथ की नीति का पालन किया.
राम जानकी मिलान (Maa Sita Janmotsav 2025)
अयोध्या के राजकुमार श्रीराम और जनकपुर की राजकुमारी सीता के विवाह का पावन अवसर आज भी जनमानस में एक आदर्श के रूप में मनाया जाता है. विदेह के राजा जनक ने एक अनोखी शर्त रखी थी — जो भी शिवजी का धनुष तोड़ेगा, वही सीता का वर बनेगा. दूर-दूर से अनेक राजा आए, पर कोई भी उस भारी धनुष को उठा नहीं सका. अंत में भगवान राम ने गुरुवर विश्वामित्र की अनुमति से धनुष उठाया और उसे एक ही झटके में तोड़ दिया, जिससे पूरा सभा गूंज उठा.
इस अद्भुत घटना के बाद महाराज जनक ने भगवान राम को अपनी पुत्री सीता का वर स्वीकार किया. जनकपुर में बड़े धूमधाम से विवाह समारोह संपन्न हुआ, जिसमें राम के साथ उनके तीनों भाई — लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न — ने भी राजा जनक की अन्य कन्याओं से विवाह किया.
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