लक्ष्मीकांत बंसोड़, बालोद। आमतौर पर थाना के बारे में आप सब जानते है, जहां किसी अपराधी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सजा दिया जाता है, लेकिन आज हम आपको रहस्य से भरा एक अजीबोगरीब थाना के बारे में बतलाने जा रहे हैं. जहां बड़े-बुजुर्गों के अनुसार, नियम विरुद्ध गलत कृत्य करने वाले देवी-देवताओं को मां थानावाली सजा देती हैं.
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के नौनिहाल मां कौशल्या के छत्तीसगढ़ में अनगिनत रहस्य छुपे हुए हैं. उन्हीं में से एक बालोद जिले के वनांचल क्षेत्र डौंडी ब्लॉक स्थित ग्राम ठेमा बुजुर्ग है, जहां विशाल बरगद पेड़ों के नीचे प्रकृति की गोद में आदिवासियों की आराध्य देवी बरगहिंया मां दंतेश्वरी की प्राचीन मंदिर विराजमान है.
माता का यह मंदिर पहले आसपास 12 गांव के आस्था का केंद्र हुआ करता था, जो वर्तमान समय में बढ़कर 18 गांव की आस्था का केंद्र बन गया है. तमाम अच्छे और शुभ कार्य करने से पहले 18 गांव के ग्रामीण माता के दरबार में पहुंच माथा टेक अनुमति व आशीर्वाद लेकर आगे बढ़ते हैं.
गांव के बड़े बुजुर्गों के अनुसार, ब्रिटिश शासन के दौरान महाराष्ट्र के लांजीगढ़ में मराईराजा का राज हुआ करता था, जो मां दंतेश्वरी का परम भक्त थे. अंग्रेजों से त्रस्त होकर मराईराजा लांजीगढ़ में अपने चल-अचल संपत्ति को छोड़ अज्ञातवास पर चले गए, जिन्हें ढूंढने राजा के दीवान व सेना, देवी-देवताओं के साथ हाथी, घोड़ा लेकर निकल पड़े.
रास्ते में बालोद जिले के ग्राम कामता गांव पहुंचे, जहां कुछ समय ठहरने और भोजन के बाद उनका काफिला आगे बढ़ घोरदा नदी पार कर ठेमाबुज़ुर्ग की ओर निकल पड़े. जब दीवान और सेना के साथ मां दंतेश्वरी का काफिला अद्भुत बरगद पेड़ों के नीचे ठेमा पहुंचा, तो स्थल की सुंदरता को देख मां दंतेश्वरी आगे ना बढ़, यही रहने का निर्णय ले ठहर गई. तब से इस गांव का नाम ठेमा से ठेमाबुजुर्ग पड़ गया. इसलिए आज भी यहां प्रकृति की पूजा करते आ रहे हैं.
मान्यता है कि मंदिर में विराजमान मां दंतेश्वरी नियम विरुद्ध गलत कार्य, जादू-टोना करने वाले देवी-देवताओं या शैतानों के खिलाफ सुनवाई कर सजा देती है, जिन्हें मां थानावाली भी कहते है. ग्रामीणों के अनुसार, इस दौरान मंदिर का वातावरण कुछ अलग होता है, जिनके बारे में ग्रामीण कुछ बताने से परहेज कर माता के आदेशानुसार रहस्य रखने की बात कहते हैं. बता दें कि ब्रिटिश शासन के दौरान पहले क्षेत्र का थाना ठेमाबुजुर्ग में हुआ करता था, जिसे 1903 में डौंडी शिफ्ट कर दिया गया.
मंदिर समिति के अध्यक्ष शिवप्रसाद बावला बतलाते है कि इस मंदिर में एक राजमाता देश फिरनतीन देवी हैं. जहां प्रदेश के कोने-कोने से भक्त आस्था के फूल चढ़ाने पहुंचते हैं. यही नहीं मंदिर समिति के 5 पंचों के पूजापाठ कर झूठ बोलने वाले या कोई चीज गुम हो जाने पर उसे सामने लाने की विनती करने पर उसकी मन्नत पूरी करती है. मंदिर में दोनों नवरात्रि पर मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित किया जाता है.