Machine Learning in Science and Medicine: आज हम न केवल पहले से कहीं अधिक ज्ञान रखते हैं, बल्कि विज्ञान का तरीका भी एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में सेप्सिस, डायबिटिक रेटिनोपैथी और अल्जाइमर जैसी बीमारियों की पहले ही पहचान की जा सकेगी. मरीजों की उम्र, लिंग और जीन के आधार पर व्यक्तिगत दवाइयाँ और इलाज तैयार किए जाएंगे.
यहां
तक कि कुछ विशेषज्ञ तो अगले एक दशक में पारंपरिक बीमारियों के अंत की भविष्यवाणी भी कर चुके हैं. साथ ही मौसम और चक्रवातों का पूर्वानुमान भी पहले से कहीं अधिक सटीक होगा. नई दवाइयाँ तैयार होने से पहले ही कंप्यूटर उनकी प्रभावशीलता का आकलन करने में सक्षम होंगे.
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विज्ञान में बदलाव क्यों आ रहा है?
कुछ दशक पहले तक वैज्ञानिक खोजें मानव श्रम और धैर्य पर निर्भर थीं. डेटा सीमित था और वैज्ञानिक स्वयं एल्गोरिद्म डिज़ाइन कर सूचनाओं से निष्कर्ष निकालते थे. लेकिन अब हर क्षेत्र में डेटा की मात्रा विस्फोटक रूप से बढ़ गई है. टेलीस्कोप हर रात टेराबाइट्स डेटा एकत्र कर रहे हैं, जीनोम सीक्वेंसिंग दिन-रात चल रही है और सिमुलेशन से पेटास्केल स्तर का डेटा उत्पन्न हो रहा है. ऐसे में मानवीय प्रयास इस डेटा के सामने बौने पड़ गए हैं.
इसी चुनौतीपूर्ण समय में मशीन लर्निंग ने विज्ञान को नया रास्ता दिखाया है. बीते एक दशक, विशेषकर पिछले पाँच वर्षों में, सेल्फ-लर्निंग एल्गोरिद्म इतने सक्षम हो गए हैं कि वे वैज्ञानिक खोजों का अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं. जिस समय विज्ञान अपने ही डेटा के भार से दबने लगा था, उसी समय मशीनें उसे संभालने के लिए तैयार हो गईं.
मशीन लर्निंग का विस्तार
मशीन लर्निंग के प्रसार के पीछे दो प्रमुख घटनाक्रम रहे हैं:
- 2012 का इमेजनेट चैलेंज – इस प्रतियोगिता में ‘एलेक्सनेट’ नामक एक डीप न्यूरल नेटवर्क ने बिना किसी पूर्वनिर्धारित नियमों के तस्वीरों में वस्तुओं की पहचान करना सीखा और त्रुटि दर को आधा कर दिया.
- 2016 में गूगल डीपमाइंड का ‘अल्फा गो’ – इसने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गो खिलाड़ी ली सेडोल को हराकर यह सिद्ध किया कि मशीनें न केवल रणनीति बना सकती हैं, बल्कि अप्रत्याशित निर्णय भी ले सकती हैं.
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विभिन्न क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव
जीवविज्ञान में प्रोटीन फोल्डिंग जैसी जटिल समस्याओं को हल करने में भी मशीन लर्निंग ने बड़ी भूमिका निभाई है. डीपमाइंड के ‘अल्फा फोल्ड2’ ने 2020 में यह साबित किया कि मशीनें सेकंडों में प्रोटीन की त्रिआयामी संरचना बता सकती हैं — वह भी प्रयोगशाला स्तर की सटीकता के साथ. इससे दवाइयों की खोज, एंजाइम डिज़ाइन और जटिल बीमारियों के अध्ययन में तेज़ी आई है. इस उपलब्धि के लिए डेमिस हासाबिस, जॉन जंपर और डेविड बेकर को 2024 का नोबेल पुरस्कार भी मिला.
आज रसायन विज्ञान, खगोलशास्त्र, जीनोमिक्स, सामग्री विज्ञान और उच्च ऊर्जा भौतिकी जैसे क्षेत्रों में मशीन लर्निंग एक अनिवार्य उपकरण बन चुकी है. इसके विस्तार में ओपन-सोर्स टूल्स जैसे PyTorch और TensorFlow, साथ ही मुफ्त ऑनलाइन कोर्सेज ने भी अहम भूमिका निभाई है.
क्या मशीन लर्निंग वैज्ञानिकों की जगह ले लेगी?
फिलहाल इसका उत्तर ‘नहीं’ है. सही प्रश्न पूछने की कल्पनाशक्ति, परिणामों की प्रासंगिकता को समझने की अंतर्दृष्टि और विचारों को जोड़ने की रचनात्मकता अब भी केवल इंसानों की विशेषता है. मशीनें पैटर्न खोजने में सक्षम हैं, लेकिन वे यह नहीं बता पातीं कि कोई पैटर्न क्यों मौजूद है.
हालाँकि, भविष्य में यह बदल सकता है. यदि मशीनें वैज्ञानिक साहित्य — रिसर्च पेपर, समीक्षाएँ, पाठ्यपुस्तकें — पर प्रशिक्षण प्राप्त कर लें, तो संभव है कि वे नए प्रश्न स्वयं तैयार करें, प्रयोग करें और शोध पत्र भी लिखें.
भविष्य भले ही स्वचालित विज्ञान की ओर बढ़ रहा हो, लेकिन आज मशीन लर्निंग वैज्ञानिकों की ताकत को बढ़ाने, उनकी गति को तेज़ करने और उन्हें अकल्पनीय नए रास्ते दिखाने का कार्य कर रही है. आने वाले समय में विज्ञान की सीमाएँ इस पर निर्भर करेंगी कि हम क्या सोच सकते हैं — न कि केवल क्या गणना कर सकते हैं.
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