कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्य प्रदेश हाइकोर्ट की ग्वालियर बेंच में माधव अंधाश्रम से जुड़े मामले की अवमानना याचिका पर सुनवाई हुई। आदेश के तहत सोशल जस्टिस डिपार्टमेंट के पीएस सचिन सिन्हा खुद कोर्ट में हाजिर हुए। जहां उन्होंने बताया कि HC के आदेश से पहले ही जो शासन द्वारा एक्ट लागू किया गया है, उसमें शासन से अनुदान प्राप्त निजी संस्था में केवल संविदा नियुक्ति का प्रावधान किया गया है, जबकि कोर्ट ने स्थाई नियुक्ति का आदेश दिया था। ऐसे में प्रिंसिपल सेक्रेटरी के जवाब से संतुष्ट होकर कोर्ट ने याचिका को डिस्पोज किया है। वहीं याचिकाकर्ता के एडवोकेट द्वारा शासन की रिपोर्ट पर दर्ज कराई गई आपत्ति पर कोर्ट ने कहा कि यदि वह सुनवाई से संतुष्ट नहीं है तो वह फिर से याचिका दायर कर सकते हैं।

दरअसल, ग्वालियर के माधव अंधाश्रम से जुड़ा यह पूरा मामला है। जहां की अव्यवस्थाओं को लेकर 2014 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट द्वारा माधव अंधाश्रम को लेकर विस्तृत निर्देश दिए थे, ताकि वहां रहने वाले दृष्टिहीन बच्चों को बेहतर व्यवस्था मिल सके। इस आदेश में हाईकोर्ट ने विशेषतौर पर दृष्टिहीन बच्चों की बेहतर परवरिश और शिक्षा के लिए अंधाश्रम में स्थाई टीचर और स्टाफ की नियुक्ति सहित 15 बिंदुओं पर अमल करने के लिए कहा था, लेकिन वहां पर सोशल जस्टिस डिपार्टमेंट द्वारा कांट्रेक्चुअल स्टाफ को काम पर रख दिया।

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ऐसे में याचिकाकर्ता ने ग्वालियर हाई कोर्ट में दिसंबर 2014 में अवमानना याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि आदेश के अनुसार रेगुलर स्टाफ की नियुक्ति की जानी थी, लेकिन डिपार्टमेंट ने वहां कांट्रेक्चुअल स्टाफ को रख दिया है, जिसके चलते वहां रहने वाले दृष्टिहीन बच्चों को आए दिन परेशानी का सामना करना पड़ता है। हाइकोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कोर्ट में सोशल जस्टिस डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को कोर्ट में फिजिकल प्रेजेंस के आदेश दिए थे।

आदेश की अवहेलना से जुड़ी इस गंभीर याचिका पर सुनवाई में दौरान हाईकोर्ट में सोशल जस्टिस डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी सचिन सिन्हा हाजिर हुए। सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया कि आदेश के समय अरुण शर्मा प्रमुख सचिव थी, जो कि साल 2017 में रिटायर हो चुकी है। HC के आदेश का पालन करने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में भी एसएलपी दायर कर दी गई है, जिस पर शीघ्र सुनवाई होनी है, लेकिन मुख्य बात यह है कि हाईकोर्ट के आदेश के पहले ही शासन ने एक एक्ट लागू किया था।

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उन्होंने बताया कि इस एक्ट के तहत अनुदान प्राप्त निजी संस्था में केवल संविदा नियुक्ति की जा सकती है। जबकि कोर्ट ने स्थाई नियुक्ति का आदेश दिया था। शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मोदी द्वारा कोर्ट में दिए गए जवाब पर हाईकोर्ट ने संतुष्टि जाहिर करते हुए याचिका को डिस्पोज कर दिया है।

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