देवेंद्र चौहान, औबेदुल्लागंज। आजादी के बाद 1952 में बने कच्चे और जर्जर भवन में स्थित एक हाई स्कूल में 76 साल बाद भी छात्र-छात्राएं जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। इस स्कूल की हालत इतनी खराब है कि टूटी छतों और दीवारों से पानी टपकता है, जिससे कक्षाओं में कीचड़ जमा हो जाता है। गिरते प्लास्टर, टपकती छत, टूटी हुई कबेलू, और दीवारों से निकलती पेड़ों की जड़ें स्कूल की दयनीय स्थिति को और खराब करती हैं।

यह स्कूल राजधानी भोपाल से महज 35 किलोमीटर दूर स्थित है, लेकिन राज्य सरकार के शिक्षा के सुधार के तमाम दावों के बावजूद इसकी स्थिति जस की तस बनी हुई है। “पढ़ेगा इंडिया, बढ़ेगा इंडिया”, “शिक्षा का अधिकार” और “सर्व शिक्षा अभियान” जैसे नारों के बावजूद जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर बयां करती है।

क्या है जमीनी हकीकत

तामोट ग्राम स्थित इस हाई स्कूल में लगभग 200 छात्र-छात्राएं पढ़ाई करते हैं। इनमें 121 छात्र-छात्राएं और कुछ शिक्षक शामिल हैं। प्राथमिक विद्यालय की बिल्डिंग में ही हायर स्कूल की कक्षाएं चल रही हैं, जहां बच्चे अपनी जान हथेली पर रखकर पढ़ाई कर रहे हैं।

सरकारी दावे और वास्तविकता

मध्यप्रदेश सरकार शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और शिक्षकों को प्रशिक्षण देने के लिए कार्य कर रही है, लेकिन इन प्रयासों का असर अभी तक तामोट के इस स्कूल में नहीं दिख रहा है। सरकारी स्कूल आज भी बेहतर शिक्षा और उचित सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।

लल्लूराम डॉट कॉम की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, छात्र-छात्राएं और शिक्षक अपनी जान जोखिम में डालकर इस जर्जर स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। बारिश के मौसम में टपकती छतों और दीवारों से निकलने वाले पानी के कारण कक्षाओं में कीचड़ जमा हो जाता है, जिससे पढ़ाई बाधित होती है।

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