भोपाल। हिंदू पंचांग के मुताबिक आज से यानी 4 जुलाई से सावन का शुभ माह शुरू हो गया हैं। सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित हैं। आज सुबह से ही भगवान शिव के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ हैं। मान्यताओं के अनुसार यह महीना भगवान शिव को सबसे जयदा प्रिय हैं। भक्त आने वाली 1 अगस्त 2023 तक सावन में भगवन शिव की आराधना कर सकते हैं। इस साल अधिकमास के कारण सावन का महीना पूरे 58 दिनों तक रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक जो कोई भगवान शिव की विधिवत पूजा करता हैं, उसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भगवान शिव की आराधना करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
भगवान शिव के भक्त उन्हें अनेक नामों से पुकारते हैं। भगवन शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त जल अभिषेक, दूध अभिषेक और रूद्राभिषेक कर के भगवन भोलेनाथ का आशीवार्द प्राप्त करते हैं। हिन्दू मान्यताओं की मानें तो भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए एक कलश जल ही काफी है। इस खास मौके पर मध्यप्रदेश में कई मंदिरों में सुबह से ही भक्तों को तांता लगा हुआ है। इसी कड़ी में आज हम मध्यप्रदेश के कुछ ऐसे शिव मदिर के बारे जानेंगे जहां दर्शन करने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भक्त आते हैं। तो चलिए जानते हैं।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन (Mahakaleshwar Jyotirlinga, Ujjain)
पूरे विश्व में उज्जैन की प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में श्रावण मास के पहले दिन भक्तों की आस्था का जन सैलाब उमड़ा हुआ है। यहां हर दिन सुबह करीब तीन बजे भस्मारती होती हैं। श्रावण मास होने के कारण यह भस्मारती ओर भी जयदा विशेष रही। भस्मारती में हजारों से ज्यादा श्रद्धालुओं ने शामिल होकर बाबा महाकाल के दर्शन किए।
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उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत में बारह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक मानी जाती है। महाकालेश्वर मंदिर की महिमा का विभिन्न हिन्दू पुराणों में वर्णन किया गया है। वहीं सबसे पहले कालिदास ने इस मंदिर की विषेशताएं बताई थी जिसके बाद कई संस्कृत कवियों ने इस मंदिर को भावनात्मक रूप से समृद्ध किया है।
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जानें क्यों हैं यह मंदिर इतना ख़ास
हिन्दू मान्यताओं की मानें तो मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकाल का यह मंदिर विश्व का एक मात्र ऐसा भगवान शिव का मंदिर है, जहां दक्षिणमुखी शिवलिंग है। इस मंदिर में तड़के चार बजे भस्म आरती करने का विधान हैं। यहां एक अनूठी विशेषता हैं, जहां तांत्रिक परंपरा द्वारा सिर्फ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर में पाया जाता हैं। इसके साथ ही महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित है। वहीं गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर एवं पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र बने हुए हैं साथ ही दक्षिण में नंदी की प्रतिमा हैं।
ओंकारेश्वर मंदिर (Omkareshwar Temple)
यह मंदिर मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। ओंकारेश्वर मंदिर की बहुत मान्यताएं हैं। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक मानी जाती हैं। इसके साथ ही यह मंदिर नर्मदा नदी के तट पर स्थित हैं वहीं इसका आकार “ओम” अक्षर के आकार का हैं । इसकी शांति से ही मंदिर में परिक्रमा करने वाले भक्तों और मंत्रों का जाप करने वाले लोगों को शांति प्रदान होती हैं। इस मंदिर में भगवान शिव की एक मूर्ति हैं।
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बता दें कि सदियों पहले भील जनजाति ने इस जगह पर लोगों की बस्तियां बसाई थी। जो अब अपनी भव्यता और इतिहास से प्रसिद्ध हो गई हैं। शास्त्र मान्यता है कि, कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर क्यों न कर ले, पर जब तक वह ओंकारेश्वर मंदिर आकर किए गए अपने सभी तीर्थों का जल लाकर यहां नहीं चढ़ाता उसके सभी तीर्थ अधूरे रहते हैं। यहां पर ओंकारेश्वर तीर्थ के साथ साथ माँ नर्मदा का भी विशेष महत्व है। शास्त्र की मानें तो जमुनाजी में 15 दिन का स्नान एवं गंगाजी में 7 दिन का स्नान जो फल प्रदान करता है, उतना पुण्यफल नर्मदा नदी के दर्शन करलेने मात्र से प्राप्त हो जाता है।
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भोजपुर मंदिर (Bhojpur Mandir)
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 23 किलोमीटर दूर रायसेन जिले में यह मंदिर स्थित है। भगवान शिव का यह मंदिर पूरे देश में प्रसिद्ध है। मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में जो शिवलिंग विराजमान है वो विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग है। इस शिवलिंग की ऊंचाई करीब 3.85 मीटर है। मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने एक ही रात में किया था। भगवान शिव के इस मंदिर को भोजपुर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर बेतवा नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर में हर दिन भक्तों की भारी भीड़ का तातां लगता है। सावन महीने में यहां पर दर्शन करना विशेष माना जाता है।
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पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर ( Pashupatinath Temple Mandsaur)
यह मंदिर मंदसौर शहर में शिवना नदी के किनारे स्थित है। पशुपतिनाथ मंदिर को मध्यप्रदेश के साथ साथ देशभर में भगवान शंकर के भक्तों की आस्था का विशेष केंद्र कहा जाता है। इस मंदिर में विराजमान भगवान शंकर की मूर्ति के आठ मुख हैं। इसके साथ ही यह मूर्ति चमकते हुए गहरे तांबे के उग्र चट्टान-खंड में बनी हैं। इस मूर्ति में पहला भाग 4 शीर्ष पर है तो दूसरा भाग 4 शीर्ष तल में विराजमान है।
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