इंदौर। मध्य प्रदेश के धार स्थित भोजशाला को लेकर कोर्ट ने आज बड़ा फैसला सुनते हुए इसके ASI सर्वे के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है और ASI को पांच सदस्यीय टीम भी गठित करने के लिए कहा है जो इसका सर्वेक्षण कर जांच रिपोर्ट कोर्ट को सौपेगी। धार भोजशाला में शुक्रवार को मुस्लिमों को नमाज की अनुमति मिली थी वहीं हिंदुओं को भी मंगलवार को पूजा करने की अनुमति थी। लेकिन हिंदू पक्ष ने यहां ओर मुस्लिम पक्ष के नमाज पढ़ने पर रोक लगाने की मांग की है। जानिए क्या है धार भोजशाला का इतिहास और इसका विवाद जिसके बाद अब कोर्ट को इस मामले में फैसला सुनना पड़ा।
धार भोजशाला को लेकर बड़ी खबरः इंदौर हाईकोर्ट ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे का दिया आदेश
खिलजी ने ध्वस्त किया था भोजशाला
माना जाता है कि राजा भोज ने सन 1034 में धार में सरस्वती सदन के रूप में भोजशाला रूपी महाविद्यालय की स्थापना की थी। यहां देश-विदेश के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। भोजशाला में मां सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति भी स्थापित की गई थी। कहा जाता है कि सन 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया था और उसके अवशेषों से भोजशाला का रूप परिवर्तित कर दिया।
अंग्रेजों के शासनकाल में यहां पर सर्वे किया गया था जिसमें सरस्वती वाग्देवी की प्रतिमा मिली थी जिसे वे अपने साथ विदेश ले गए थे। तत्कालीन धार के राजा आनंद राव पवार चतुर्थ की तबीयत बिगड़ने पर मुस्लिम समाज ने उनकी सेहत के लिए दुआ मांगने की लिए भोजशाला में जगह मांगी थी। मुस्लिमों की मांग पर तत्कालीन दीवान खंडेराव नाटकर ने 1933 में मुस्लिम समाज को भोजशाला में नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी थी।
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तत्कालीन दिग्विजय सरकार ने जारी किया एक तरफा आदेश
सन 1997 में प्रशासन ने भोजशाला में आम नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि दोनों पक्षों को पूजा करने और नमाज पढ़ने का अधिकारी दिया गया था। 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने तत्कालीन दिग्विजय सिंह की सरकार के फैसले के बाद भोजशाला में आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन मुस्लिम मुसलमानों को नमाज की अनुमति जारी रही। हालांकि, कोर्ट के जरिए हिंदुओं को 2003 में फिर से पूजा करने की अनुमति मिल गई और पर्यटकों के लिए शुल्क के साथ भोजशाला को खोल दिया गया।
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भोजशाला विवाद को लेकर साल 1993-94 में जयभान सिंह पवैया और साध्वी ऋतम्भरा ने आंदोलन भी किया था। वहीं 2003 के विधानसभा चुनाव में इसी को मुद्दा बनाकर बीजेपी पहली बार सरकार में आई और उमा भारती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी।
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