डेस्क. अब से कुछ दिनों बाद कुंभ नगरी में आध्यात्म और संस्कृति का संगम होने वाला है. जिसके साक्षी बनने के लिए श्रद्धालुओं का ज्वार उमड़ेगा. जिसे देखते हुए शासन-प्रशासन ने तैयारियां पूरी कर ली है. जिससे कि कोई अप्रिय घटना ना हो सके. साथ ही सुरक्षा को लेकर भी तमाम इंतजाम कर लिए गए हैं, ताकि किसी भी तरह की अनहोनी को टाला जा सके. इस बीच कुंभ की एक ऐसी याद जो शायद कभी नहीं मिट सकती. कुंभ के इतिहास में दो बार एस घटना हुई जो आज भी लोगों के जहन में है. लल्लूराम डॉट कॉम की महाकुंभ महाकवरेज में आज हम आपको एक बार फिर कुंभ के इतिहास में लेकर जा रहे हैं. आइए जानते हैं आखिर कुंभ के मेले में ऐसा क्या हुआ था?

घटना 1954 और 2013 में हुए कुंभ मेलों की है, जो बहुत ही दर्दनाक थी. इन दोनों घटनाओं में सैकड़ों लोगों ने जान गंवाई थी. इस हादसे ने शासन-प्रशासन की व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी थी. जब इसकी पोल खुली तो सरकार से सहन भी नहीं हुआ. हादसे की तस्वीरों की खूब चर्चा हुई थी. अब भला सरकार इसे कैसे बर्दाश्त करती कि इतनी बड़ी दुर्घटना हो गई और उसमें सरकार की किरकिरी हो रही है.
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जब बेकाबू हुआ था हाथी, मेले में नेहरू जी भी थे मौजूद
आजाद भारत में 1954 में कुंभ मेला हुआ था. 3 फरवरी की तारीख थी, मौनी अमावस्या का दिन था. इस दिन संगम तट पर भगदड़ मच गई, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. बताया जाता है कि इस घटना के समय वहां पंडित जवाहरलाल नेहरू भी उपस्थित थे और एक हाथी के नियंत्रण से बाहर होने के कारण भगदड़ का माहौल बना. कई श्रद्धालु नदी में डूब गए, कुछ कुचले गए. इस हादसे में करीब 800 लोगों की जान चली गई.
VIP की एंट्री पर रोक
इसके बाद से कुंभ मेला के प्रमुख स्नान पर्वों पर वीआईपी के प्रवेश पर रोक लगाने का निर्णय लिया गया और हाथियों के प्रवेश पर भी पाबंदी लगा दी गई. यही वजह है कि आज भी कुम्भ, महाकुम्भ, अर्द्धकुम्भ के बड़े स्नान पर्वों के दिन वीआईपी के जाने पर पाबंदी है.
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स्टेशन पर में थी भगदड़
ऐसी ही एक दुर्घटना 2013 भी हुई थी. ये भी मौनी अमावस्या का दिन था. प्रयागराज के रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचने से 35 लोगों की मौत हो गई थी. वहीं दर्जनों लोग घायल भी हुए थे. यह घटना प्लेटफार्म 6 के पास फुट ओवरब्रिज की सीढ़ियों पर हुई थी. उस समय रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ थी. लोग स्नान करने के बाद घर लौटने के लिए पहुंच रहे थे. इस हादसे के बाद, रेलवे ने भीड़ प्रबंधन पर ध्यान देना शुरू किया और यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी.
‘मौत का अनाउंसमेंट’
इस हादसे की वजह एक अनाउंसमेंट बनी थी. दरअसल, यात्री संगम से वापस घर लौट रहे थे. सभी प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर थे. जिस प्लेटफॉर्म में ट्रेन आनी थी वहां सभी इंतजार कर रहे थे. लेकिन अचानक अनाउंसमेंट हुई कि ट्रेन दूससे प्लेटफॉर्म पर खड़ी है और खुलने वाली है. फिर क्या था, लोग दूसरे प्लेटफॉर्म की ओर दौड़े. फुट ओवरब्रिज से होते हुए लोग जा रहे थे. इतने में ब्रिज पर लोड इतना ज्यादा बढ़ गया कि पुल नीचे गिर गया और 35-36 लोग इस हादसे में मारे गए.
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