Maha Kumbh 2025. अखाड़ों और नागा साधुओं की परंपरा, प्रतिष्ठा और नाम किसी रहस्य से कम नहीं है. सदियों से चली आ रही उनकी परम्परा का निर्वहन आज भी यानी 21वीं सदी में भी हो रहा है. जगद्गुरु भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किए गए अखाड़े और इनके अंतर्गत आने वाले नागा साधुओं का जीवन, साधु बनने की प्रक्रिया, सब कुछ रहस्यों से भरा हुआ है. जगद्गुरु ने इन अखाड़ों की स्थापना सनातन धर्म, परंपरा और संस्कृति की रक्षा के लिए की थी. यही वजह है कि इन साधुओं को नागा सैनिक भी कहा जाता है. लल्लूराम डॉट कॉम के महाकुंभ महाकवरेज की इस सीरीज में हम आपको नागा साधुओं की कामवासना को खत्म करने की प्रक्रिया के बारे में बताने जा रहे हैं.

नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिनतम स्तरों से गुजरती है. इसे हर कोई पार नहीं कर पाता. ये जरुरी नहीं कि हर दीक्षा लेने वाला सन्यासी इस परीक्षा को पार ले. इसे पार करने के बाद ही वह वास्तव में नागा साधु कहलाता है. नागाओं के अध्याय का प्रारंभ इनके अंत से ही होता है. यानी सन्यास के संसार में प्रवेश करने की शुरुआत साधकों को अपने ही पिंडदान से करनी पड़ती है. जो बताता है कि भौतिक संसार का त्याग कर ही आध्यात्म के शिखर पर पहुंचा जा सकता है. इस प्रक्रिया के बाद साधक को दीक्षा दी जाती है.

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इस तरह खत्म की जाती है काम वासना

ये प्रक्रिया तो शुरुआत होती है. इन सबके बाद आखिर में नंबर आता है कठिन परीक्षा का. ये परीक्षा साधकों के लिए कई बार दर्दनाक भी होती हैं. क्योंकि इसमें काम वासना पर विजय प्राप्त कराई जाती है. इस प्रक्रिया को कहा जाता है ‘लिंग तोड़ प्रक्रिया’. इसमें दीक्षा ले चुके साधु को खंभे के सहारे खड़ा कर उन पर पवित्र जल छिड़का जाता है. फिर दीक्षा देने वाले सन्यासी उस युवक के लिंग को पकड़कर तीन बार तेज झटके से खींचते हैं. जिससे अंदर से नसें टूट जाती है. जानकारी के मुताबिक साधक को अखाड़े के ध्वज के नीचे 24 घंटे तक भूखा खड़ा रखा जाता है. उनके कंधे पर एक दंड और हाथ में मिट्टी का बर्तन होता है. वहीं अखाड़े के पहरेदार उन पर नजर रखते हैं. जिसके बाद अखाड़े का एक साधु उनके लिंग को झटके देकर निष्क्रिय करता है. इसके बाद साधकों को उपचार का सहारा लेना पड़ता है. जिसमें शुद्ध घी पीने से लेकर कई प्रकार की दवाएं शामिल हैं.

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ठंड हो या बरसात, शरीर पर नहीं पड़ता फर्क

ऐसी ही कई प्रक्रियाओं और साधनाओं से गुजरकर नागा साधुओं का शरीर ऐसा हो जाता है जिसे हर मौसम को झेलने की क्षमता होती है. उनका शरीर और जीवन उस बच्चे की तरह हो जाता है जो मां के गर्भ में होता है. जिसे ना ठंड लगती, ना गर्मी.

नागा साधुओं का उद्देश्य

जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने नागा सैनिकों की नियुक्ति सनातन धर्म की रक्षा के लिए की थी. नागा साधु आदि शंकराचार्य के समय से ही सनातन धर्म पर आने वाली विपदाओं से निपटने के लिए हथियारबंद सेना के रूप में काम करते आ रहे हैं. मुगल काल में भी नागा सैनिकों ने सनातन की रक्षा के लिए कई लड़ाईयां लड़ीं थी. नागा साधुओं को बंदुक समेत अन्य सैन्य प्रशिक्षण भी दिया जाता है. ताकि कभी युद्ध की भी स्थिति हो तो वे सनातन और देश की रक्षा कर सकें.