Maha Shivratri 2024 : महाशिवरात्रि के दिन लाखों शिवभक्त भगवान शिव के मंदिरों में जाकर अभिषेक और पूजा अर्चना करते हैं. शिव जी को प्रसन्न करने के लिए बहुत से लोग निर्जला व्रत भी रखते हैं. महाशिवरात्रि को लेकर यह मान्यता है कि जो भी अविवाहित कन्या अच्छे वर और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं, भगवान शिव की कृपा से उन्हें मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है. क्या आपको पता है कि भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता है?

क्यों मनाया जाता है महाशिवरात्रि का पर्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि का यह पावन पर्व तीन कारणों से मनाया जाता है. इन तीन कारणों में भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, लेकिन क्या आपको उन दो और कारणों के बारे में पता है? जिस वजह से महाशिवरात्रि का यह पर्व मनाया जाता है.

शिव-पार्वती विवाह

माता पार्वती के कठोर तप के बाद जब भगवान शिव विवाह के लिए राजी हुए थे, तब भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के दिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पड़ी थी. इस तिथि को हिंदू धर्म में भगवान शिव और माता पार्वती के महामिलन के उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस तिथि के दिन महादेव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, इसलिए इस दिन का महत्व और ज्यादा बढ़ गया. कथाओं में वर्णन है कि इस दिन जो कोई भी सच्चे मन और भाव से शिवलिंग पर जल अर्पित करता है और अपनी सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार व्रत और पूजन करता है, भगवान शिव उसकी हर एक मनोकामना को पूरी करते हैं.

भगवान शिव का शिवलिंग स्वरूप की उत्पत्ति

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव अपने शिवलिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे. इस दिन से ही पहली बार भगवान विष्णु और ब्रह्मदेव उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की थी. यह भी एक कारण है महाशिवरात्रि मनाने का और इस दिन पूरे विधि-विधान से शिवलिंग की पूजा करने का.

समुद्र मंथन के बाद किया था विषपान

जब असुर और देवताओं के बीच समुद्र मंथन हुआ था तब पहली बार में विष यानी जहर का कटोरा निकला था. उस विष को पीने का सामर्थ्य किसी में भी नहीं था, इसलिए पूरी सृष्टी को बचाने के लिए भगवान शिव ने विष का पान किया था. जिस दिन भगवान शिव ने विष पान किया था, उस दिन महाशिवरात्रि यानी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पड़ी थी. विष पान के बाद शिव जी का गला नीला पड़ गया था, जिसके बाद उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना गया.