Mahadevi Verma Birth Anniversary: लखनऊ। हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक महादेवी वर्मा की 26 मार्च को 116वीं जयंती मनाई जाएगी. आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है. कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है.
महादेवी वर्मा के रूप में परिवार में सात पीढ़ियों के बाद बेटी ने जन्म लिया था. बेटी को देखने पर पिता बांके बिहारी के मुंह से निकला कि यह कोई साधारण बच्ची नहीं बल्कि देवी स्वरुपा है. इसके बाद से ही बच्ची का नाम महादेवी रख दिया गया था. आने वाले दिनों में यही बच्ची महीयसी महादेवी वर्मा के नाम से विख्यात हुईं, जिन्होंने साहित्य के जरिए समाज में नई चेतना और ऊर्जा जगाई.
महात्मा गांधी से मुलाकात ने बदला जीवन
महादेवी वर्मा की शादी केवल 14 साल की उम्र में ही हो गई थी. उनकी शादी बरेली के डॉक्टर स्वरूपनारायण वर्मा से हुई थी. कुछ समय बाद ससुराल का वातावरण रास न आने के कारण वो आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद आ गईं. उनके विषय में कहा जाता है कि वो बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थीं, लेकिन महात्मा गांधी से मिलने के बाद उन्होंने समाज-सेवा की ओर अपना मुख मोड़ लिया.
गद्य-पद्य के साथ चित्रकला में भी निपुण
महादेवी वर्मा ने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किए. महादेवी के काव्य संग्रहों में ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’, ‘यामा’, ‘नीहार’, ‘दीपशिखा’, और ‘सप्तपर्णा’ आज भी सबसे ज्यादा पढ़े जाते हैं. गद्यकार के रूप में भी उनकी काफी ज्यादा पहचान बनीं. गद्य में रूप उन्होंने ‘स्मृति की रेखाएं’, ‘अतीत के चलचित्र’, ‘पथ के साथी’ और ‘मेरा परिवार’ हिदी साहित्य जगत की अनमोल धरोहर हैं.
‘विक्रांत यामा’ पर मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार
साहित्य साधना के लिए भारत सरकार ने इन्हें पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया. इसके साथ ‘सेकसरिया’ तथा ‘मंगला प्रसाद’ पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया. वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से भारत-भारती पुरस्कार दिया गया. इसी वर्ष का विक्रांत यामा पर इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ.
अविवाहित की भांति बिताया जीवन
महादेवी ने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अन्तिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं. उनका बाल-विवाह हुआ था, लेकिन उन्होंने अविवाहित की भाँति जीवन-यापन किया. 11 सितंबर 1987 को यह महान कवयित्री पंचतत्व में विलीन हो गईं.
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