रायपुर. माँ दुर्गा जी के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी हैं. इनका वर्ण पूर्णतः गौर हैं. इस गौर वर्ण की उपमा स्वर्ण, चंद्र और कुंद के फूल से की गई है. इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है. इनके समस्त वस्त्र और आभूषण आदि श्वेत हैं. इनका वाहन वृषभ है, जिसका रंग भी श्वेत है. इनकी चार भुजाए हैं, दाहिने भुजा के उपर वाली भुजा में अभयमुद्रा नीचे में डमरू बायीं भुजा के उपर वाली भुजा में त्रिषूल और नीचे वरमुद्रा है.

मुद्रा अत्यंत शांत व मनोहारी है. महाकाली के रूप में पावर्ती का रंग तप करने के उपरांत अत्यंत काला पड़ गया था. इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान गौर हो उठा. अंधकार का नाश करने वाली, परम ज्योर्तिमयी प्रकाशमयी शक्ति ही ‘महा गौरी’ वृक्षभ आसन पर आसीन है. वृषभ धर्म का स्वरूप है. धर्म ही अर्थ, काम व मोक्ष को प्रदान करने वाली है. सफेद वस्त्र धारण करने वाली, परम पवित्र भगवती महागौरी हमारे चित्र के समस्त जड़ता अविद्या तमसता का अंत कर चैतन्य का प्रकाश करती हैं.

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महागौरी पूजा विधि 

नवरात्रि में अष्टमी के दिन का विशेष महत्व होता है. कुछ लोग इस दिन नवरात्रों का समापन करते हैं, तो कुछ लोग नवमी के दिन. जो लोग अष्टमी पूजन करते हैं, उनके लिए गौरी पूजा बहुत महत्वपूर्ण होती है. इस दिन देवी गौरी की पूजा का विधान पूर्ण रुप से भक्ति भाव से भरा होता है. अष्टमी के दिन भी देवी की पंचोपचार सहित पूजा करें. फल, फूलों की मालाएं, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लोंग इत्यादि वस्तुओं सहित पूजा करनी चाहिए.

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महागौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी और काजल इत्यादि श्रंगार की वस्तुएं भेंट करते हैं. महागौरी की मूर्ति को लाल रंग के कपडे से लिपेट कर उन्हें चैकी पर रखा जाता है. सबसे पहले श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है. पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान, चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं. इसके पश्चात कलश का पूजन भी किया जाता है.

नवरात्रि में कुंवारी कन्याओं को पूजने और भोजन कराने की परंपरा भी है. हालांकि नवरात्रि में हर दिन कन्याओं के पूजा की परंपरा है पर अष्टमी और नवमी को अवश्य ही पूजा की जाती है. 2 वर्ष से लेकर 11 वर्ष तक की कन्या की पूजा का विधान किया गया है.