प्रयागराज। महाकुंभ 2025 का भव्य शुभारंभ हो गया है। एक ओर जहां देश और दुनिया के कोने-कोने से पहुंचे लाखों श्रद्धालु संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर महाकुंभ में 100 महिलाएं नागा संन्यासी बन रही है। इनमें से 2 विदेशी महिलाएं भी है। सभी महिलाओं ने जूना अखाड़े से नागा संन्यासी की दीक्षा ली। आज से इनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल जाएगी। सांसारिक मोह माया को त्याग कर सभी महिलाएं प्रभु की भक्त में लीन हो जाएंगी।
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पंच गुरु से लेनी पड़ती है दीक्षा
नागा साधु बनने के लिए कठोर तप और साधना करना पड़ता है। महिला नागा साधुओं को विभिन्न प्रकार के कठिन नियमों से होकर गुजरना पड़ता है। संन्यासिनी अखाड़ों के दीक्षा लेने से पहले पंच संस्कार किया जाता है। पंच संस्कार के बिना उनकी दीक्षा पूरी नहीं होती। इसके तहत महिलाओं को पंच गुरु से दीक्षा प्राप्त करना होता है। पहला शिखा गुरु महिलाओं को शिखा देते है। दूसरे गुरु कंठी पहनाते है। वहीं तीसरा गुरु भभूत और चौथा लंगोटी गुरु होता है। पांचवा गुरु मुखिया होता है, जिसे शाखा गुरु कहा जाता है।
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शाखा गुरु की करनी पड़ती है सेवा
शाखा गुरु के अंतर्गत नागा सन्यांसी की शिक्षा दीक्षा शुरु होती है। शाखा गुरु के अधीन रहकर दो से तीन साल तक कठिन परिश्रम और सेवा करनी होती है। जिसके तहत अपने पुरातन शास्त्रों का अध्ययन करना ही गुरु की सच्ची सेवा माना जाता है। इसका अगल चरण कुंभ में होता है। जहां सबसे पहले उसे अवधूतानी बनाते हैं। पंच संस्कार पूरे होने के बाद ही छठवा गुरु उसे कुंभ के समय नागा सन्यासी बनने का दीक्षा देता है।
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महाकुंभ में इन दिनों नागा सन्यासी की भर्ती चल रही है। जूना अखाड़े ने संन्यास धारण करके अखाड़े का सदस्य बनने की दीक्षा शुरु कर दी है। संगम घाट पर सभी ने केश कटवाए और जीते जी खुद का और अपनी सात पीढ़ियों का पिंडदान किया है। इसके लिए घाट पर 17 पिंड बनाए गए है। जिनमें से 16 उनके सात पीढ़ियों के और एक उनके लिए बनाया गया था।
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