Mahakumbh 2025, डेस्क. सनातन सभ्यता के सबसे बड़े पर्व में से एक महाकुंभ के शुभारंभ का इंतजार सभी को है. मेले को लेकर तैयारियां पूरी है. वहीं इस बार श्रद्धालु इस महाकुंभ में आने के लिए उत्साहित और लालायित भी हैं. क्योंकि इस बार का महाकुंभ विशेष है. पूरे 144 साल बाद विशेष संयोग के चलते इस बार के महाकुंभ कि विशिष्टता बढ़ गई है. इसका महत्व दोगुना हो गया है. इसे ‘पूर्ण महाकुंभ’ कहा जाता है. वैसे आम जन मानस में ये भ्रांति रहती है और एक जिज्ञासा भी है कि आखिर अर्ध कुंभ, कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर है? लल्लूराम डॉट कॉम के महाकुंभ महाकवरेज की इस कड़ी में आज हम आपको इनके अंतर के बारे में बता रहे हैं.

दरअसल, महाकुंभ सनातन संस्कृति के सबसे बड़े आयोजन में से एक है. ये केवल आस्था का प्रतीक नहीं है. बल्कि ये भारत की संस्कृति, परंपरा का द्योतक है. भारतीय दर्शन की पहचान है. जिसमें देशभर के साधु-सन्यासी हिस्सा लेते हैं. वहीं श्रद्धालु भी इसका इंतजार करते हैं. तो सबसे पहले कुंभ के बारे में जानते हैं कि आखिर कुंभ क्या है?

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इसलिए होता है कुंभ का आयोजन

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों के बीच 12 दिन घमासान युद्ध हुआ. अमृत को पाने की लड़ाई के बीच कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती के चार स्थानों पर गिरी थीं. ये जगह हैं प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक. इन्हीं चारों जगहों पर कुंभ का मेला लगता है.

जब गुरु वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं तब कुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. जब गुरु और सूर्य सिंह राशि में होते हैं तब कुंभ मेला नासिक में आयोजित होता है. गुरु के सिंह राशि और सूर्य के मेष राशि में होने पर कुंभ मेला उज्जैन में आयोजित होता है. सूर्य मेष राशि और गुरु कुंभ राशि में होते हैं तब हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है.

गणना के अनुसार तय होती है जगह

विष्णु पुराण में वर्णन आता है कि जब बृहस्पत ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होते हैं तब हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होता है. इसी तरह जब सूर्य और बृहस्पत सिंह राशि में होते हैं तब नासिक में कुंभ होता है. जब बृहस्पत कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तब उज्जैन में कुंभ होता है. ऐसे ही माघ अमावस्या के दिन जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और बृहस्पत मेष राशि में होते हैं तब प्रयागराज में कुंभ होता है.

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अर्ध कुंभ, कुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में अंतर

अर्ध कुंभ

अर्ध कुंभ का आयोजन हर 6 साल में होता है. जो कि हरिद्वार में गंगा और प्रयागराज में में त्रिवेमी संगम पर होता है. इसे कुंभ मेले का आधा चक्र माना जाता है. खगोलीय गणना के मुताबिक जब बृहस्पति वृश्चिक राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब अर्ध कुंभ लगता है.

कुंभ मेला

कुंभ का ओजन हर 12 साल में होता है. जो कि हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में लगता है. जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं तब कुंभ का मेला लगता है.

पूर्ण कुंभ

पूर्ण कुंभ हर 12 साल में केवल प्रयागराज में होता है. इस दौरान धार्मिक अनुष्ठान होते हैं. इसका आयोजन भी खगोलीय गणनाओं पर आधारित है. 12 वर्ष पूर्ण होने के बाद प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर ही इसका आयोजन होता है.

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महाकुंभ

महाकुंभ का आयोजन हर 144 साल में केवल प्रयागराज में होता है. या यूं कहें कि जब 12 बार पूर्ण कुंभ हो जाता है तब महाकुंभ का मेला लगता है. यानी 144 साल बाद. जब बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा एक जगह पर गोचर करते हैं तब महाकुंभ होता है.