विक्रम मिश्र, महाकुम्भ नगर। महाकुंभ में नियम तोड़ने वाले संतों को सजा मिलती है। संतों को मिलने वाली सजा ऐसी वैसी नहीं बहुत ही हृदयविदारक और वेदना से ग्रसित होती है। कोतवाल या छड़ीदार के द्वारा आरोपी संतों को दी जाती है। छावनी प्रवेश के बाद ही हर अखाड़े के कोतवाल या छड़ीदार उनको छावनी में मिलता है। जबकि उसकी अनुमति के बिना कोई भी अपने ध्वज का अनुष्ठान नहीं कर सकता है। ऐसे में छड़ीदार की अनुमति संतों को हर कार्य हेतु चाहिए होती है। शिविर में सुरक्षा के साथ अनुशासन बनाये रखने की जिम्मेदारी इन्हीं के पास होती है।
सजा का क्या है प्रावधान
नियम तोड़ने वाले संत को कोतवाल के सामने ही पीटा जाता है। या फिर उसके कपड़े उतरवाकर नग्न अवस्था मे ठंढक या गर्मी में पूरी रात बाहर छोड़ दिया जाता है। या फिर कोतवाल के सामने ही 108 बार गंगा जी मे डुबकी लगवाई जाती है। ये विभिन्न प्रकार है। इसके अलावा किसी संत को लंबे समय तक सज़ा देनी हो तो उसकी ड्यूटी रसोई में या फिर रात्रि पहरेदारी में लगाई जाती है। इसके अलावा दिनभर में में 6 घण्टे उन्हें मुर्गा भी बनना पड़ता है।
क्या होता है गोला लाठी
गोला लाठी अखाड़े के कोतवाल के पास एक काठदंड होता है जिस पर की पूरे तरह से चांदी लिपटी रहती है। इस गोला लाठी को न्याय की लाठी भी कहते है। जिसके स्तम्भित या झुकाव के आधार पर ही सजा का चुनाव होता है।
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