Mahakumbh 2025, डेस्क. संगम नगरी 12 वर्षों बाद एक बार फिर भक्ति और आस्था से सराबोर होने जा रही है. 12 साल में होने वाले महाकुंभ (Maha Kumbh 2025) का इंतजार सभी को रहता है. चारो ओर भक्तिपूर्ण वातावरण, आस्था का संचार, संगम की अलौकिक छटा, यही सब श्रद्धालुओं को कुंभ की ओर आकर्षित करते हैं. इसके अलावा महाकुंभ के मुख्य आकर्षण होते हैं नागा साधू. इनकी दुनिया, इनकी परंपरा एक रहस्य है. सभी नागा साधू किसी ना किसी अखाड़े से संबंध रखते हैं. आज हम अखाड़ों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं.

मान्यताओं के अनुसार कुल 13 अखाड़े होते हैं. जिनका प्रतिनिधित्व उनके आयार्य करते हैं. इन सभी 13 अखाड़ों पर भी एक अखाड़ा परिषद होता है. जो इन सभी पर नियंत्रण करता है. लेकिन इन सबसे पहले हमें ये जानना चाहिए कि इन अखाड़ों की शुरुआत कहां से हुई? इनकी स्थापना कैसै, क्यों और किसने की?

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जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने स्थापित किए 13 अखाड़े

मान्यता के अनुसार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने आठवीं सदी में 13 अखाड़ों की स्थापना की थी. जिसका उद्देश्य सनातन धर्म और वैदिक संस्कृति की रक्षा था. उस दौर में वैदिक संस्कृति और यज्ञ परंपरा पर संकट था. बाद में मुगलों और अंग्रेजों के समय में भी धर्मांतरण जैसी समस्याएं थी. आदि शंकराचार्य जी के समय बौद्ध धर्म तेजी से भारत में फैल रहा था और बौद्ध धर्म में यज्ञ और वैदिक परंपरा वर्जित थीं. मूलतः धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की एक सेना तैयार की गई. जिसे अखाड़ा कहा गया. इसमें नागा साधुओं को शस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा दी जाती है. मान्यता के अनुसार कुल 13 अखाड़े होते हैं. जिनमें 7 अखाड़े सन्यासियों के होते हैं, 3 वैष्णवों के होते हैं, 2 उदासियों के होते हैं और 1 निर्मल अखाड़ा होता है. इसमें निरंजनी और जूना अखाड़ा सबसे बड़ा होता है.

जगद्गुरु भगवान आदि शंकराचार्य

आदि शंकराचार्य जी ने 10 अखाड़ों (शैव और उदासीन) की व्यवस्था चार शंकराचार्य पीठों के अधीन रखी. इन अखाड़ों की कमान शंकराचार्यों के पास होती है. 10 शैव अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर का पद सबसे बड़ा होता है. ये ही अखाड़ों के प्रमुख होते हैं. दूसरी तरफ वैष्णव अखाड़ों में अणि महंत पद सबसे बड़ा होता है. इसमें महामंडलेश्वर जैसे पदों के समतुल्य श्रीमहंत का पद होता है. इन सभी श्रीमहंतों के आचार्य को अणि महंत कहा जाता है, जो अखाड़ा प्रमुख होते हैं.

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ये है परंपरा प्राप्त 13 अखाड़े-

  • निरंजनी अखाड़ा
  • जूना अखाड़ा
  • महानिर्वाणी अखाड़ा
  • अटल अखाड़ा
  • आह्वान अखाड़ा
  • आनंद अखाड़ा
  • पंचाग्नि अखाड़ा
  • नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा
  • वैष्णव अखाड़ा
  • उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा
  • उदासीन नया अखाड़ा
  • निर्मल पंचायती अखाड़ा
  • निर्मोही अखाड़ा

परंपरा के अनुसार शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं.

दशनामी संप्रदाय

शैव सन्यासी संप्रदाय के तहत ही दशनामी संप्रदाय जुड़ा हुआ है. जो जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी द्वारा बनाया गया था. दशनामी संप्रदाय के नाम इस प्रकार हैं- गिरी, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम.

कैसे बनते हैं नागा?

नागा साधुओं की बात करें तो, इसकी प्रक्रिया आसान नहीं होती है. शैव परंपरा में अखाड़े में आते ही किसी को भी दीक्षा नहीं दी जाती. नागा बनने के लिए पहले अखाड़े में 6 महीने से लेकर 6 साल तक सेवा देनी पड़ती है. फिर गुरु का चुनाव होता है. इस दौरान अखाड़ा आवेदक का इतिहास और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी इकट्ठा करता है. आवेदक का गृहस्थ आश्रम से कोई संबंध नहीं होना चाहिए. फिर किसी कुंभ मेले में उसे दीक्षा दी जाती है. जिसमें दीक्षा लेने वालो को खुद का पिंडदान करना होता है. करीब 36 से 48 घंटे की दीक्षा प्रक्रिया के बाद उसे नए नाम के साथ अखाड़े में प्रवेश मिलता है.