लखनऊ। महाकुंभ 2025 की तैयारियां अंतिम चरण में है। 13 जनवरी से विश्व के सबसे बड़े धार्मिक मेले का शुभारंभ होने जा रहा है। देश और दुनिया के कोने-कोने से साधु और संतों के आने का सिलसिला शुरु हो गया है। कुंभ मेले में आस्था और भक्ति के अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे हैं। महाकुंभ में भांति-भांति के साधु-संत और बाबा पहुंचे रहे है, जो मेले की शोभा बढ़ा रहे है। आज हम आपको उन्हीं साधु-संतों के बारे में बताएंगे जो देशभर में सुर्खियां बटोर रहे है।

बवंडर बाबा : मध्य प्रदेश से बाइक लेकर महाकुंभ पहुंचे बवंडर बाबा खूब सुर्खियां बटोर रहे है। बाबा ने मादक पदार्थों पर देवी-देवताओं की तस्वीर लगाने पर आपत्ति जताई। उनका कहना है कि देवी-देवताओं की तस्वीरों का इस तरह उपयोग करना अपमानजनक है। अब बवंडर बाबा ने इसी अपमान को समाप्त करने के लिए एक मुहिम छेड़ी है। बवंडर बाबा ने साढ़े तीन सालों में 1,15,000 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा की है और ये अपने साथ जरूरी सामान अपनी गाड़ी में ही रखकर चलते हैं। अब बिना चप्पल के लाखों किलोमीटर की यात्रा करने वाले बवंडर बाबा का मिशन महाकुंभ में भी जारी है।

चाबी वाले बाबा : कुंभ नगरी प्रयागराज में साधु-संतों की अलग दुनिया नजर आती है। इन्हीं में से एक हैं चाबी वाले बाबा, जो अपने अनोखे अंदाज से श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। 50 वर्षीय बाबा हरिश्चंद्र विश्वकर्मा को लोग ‘कबीरा बाबा’ के नाम से भी जानते हैं। वे अपने साथ 20 किलो की लोहे की चाबी लेकर चलते हैं। बाबा का कहना है कि यह चाबी जीवन और अध्यात्म का प्रतीक है।

लिलिपुट बाबा : महाकुंभ 2025 में आए लिलिपुट बाबा 57 साल के हैं। उनका कद 3 फीट 8 इंच है। उनका हठयोग है कि वे आजीवन नहीं नहाएंगे। पैर में खड़ाऊं और नाक के बीच बाली पहनते हैं। उनका कहना है कि गुरु ने जब हठयोग की दीक्षा दी थी तो स्नान न करने की शर्त थी इसीलिए पिछले 32 साल से स्नान नहीं किया है। हालांकि बाबा स्वच्छता को लेकर बेहद सतर्क हैं.

अनाज वाले बाबा : प्रयागराज में महाकुंभ 2025 के आयोजन को लेकर तैयारी जारी है। इस आयोजन की आधिकारिक शुरुआत 13 जनवरी से होगी। हालांकि इससे पहले ही कुम्भ क्षेत्र में साधु-संतों का आगमन शुरू हो चुका है। इस बार कुम्भ क्षेत्र में “अनाज वाले बाबा” सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। दरअसल अनाज वाले बाबा का असली नाम अमरजीत है। यह उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के मारकुंडी क्षेत्र के निवासी हैं। बाबा अपने अनोखे हठयोग से विश्व शांति और हरियाली का संदेश दे रहे हैं। बाबा ने अपने सिर पर गेहूं, बाजरा, चना जैसी फसलें उगा रखी हैं, जो उनकी खास पहचान बन चुकी हैं।

प्रेमा गिरी महाराज : ये है बाबा प्रेमा गिरी महाराज, जो मूलतः गुजरात के है। इस समय प्रेमा गिरी महाराज प्रयागराज में तपस्या कर रहे हैं। 21 सालों से उन्होंने अपने हाथ को ऊपर किया हुआ है। अपनी उर्ध्वबाहु तपस्या हठ योग के चलते हाथ ऊपर किया हुआ है, जिससे उनके नाखूनों की लंबाई बहुत बढ़ चुकी है। बाबा के हाथ सूख चुके हैं, और उनका कहना है कि अब वह कभी अपने हाथ को नीचे नहीं करेंगे।

तिरंगा बाबा : संगम की रेत पर इस बार एक खास बाबा ने लोगों का ध्यान खींचा है, जिन्हें सब ‘तिरंगा बाबा’ कहते हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे हर समय अपने साथ हर समय तिरंगा झंडा लेकर चलते हैं और जहां ये पहुंचते हैं वहां तिरंगा लगाकर उसकी पूजा करते हैं। राष्ट्रप्रेमी तिरंगा बाबा अपने राष्ट्रध्वज प्रेम के लिए जाने जाते हैं। इनके इष्टदेव भी तिरंगा हैं और धर्मध्वजा भी तिरंगा ही है। फिलहाल बाबा ने गंगा के तट पर संगम की रेती में तिरंगा लगाकर वहीं अपनी धुनी रमा ली है।

साइकिल वाले बाबा : एक ऐसे भी बाबा हैं जो साइकिल की सवारी करते हुए संगम की रेती पर धूनी रमाने के लिए आए हुए हैं। उन्होंने अपनी साइकिल को आश्रम का रूप दे दिया है। साइकिल को हाईटेक नहीं बल्कि जुगाड़ टेक्नोलॉजी से इस तरह तैयार किया है कि वह हाईवे पर भी फर्राटा भर सके। महाकुंभ में लोग इन्हें साइकिल वाले बाबा के नाम से पुकारते हैं। खुद को भगवान भोलेनाथ का परम भक्त बताने वाले बाबा का नाम पंडित संपत दास रामानुज ब्रह्मचारी हैं जो बिहार के औरंगाबाद जिले के रहने वाले हैं। संपत दास रामानुज ब्रह्मचारी हैं। यह बिहार के औरंगाबाद जिले के रहने वाले हैं।

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सबसे बड़ा धार्मिक मेला

बता दें कि महाकुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जो हर 12 साल में एक बार प्रयागराज में आयोजित होता है। इसमें लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर आकर स्नान करते हैं। इस मेले के महत्व को देखते हुए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा सभी आवश्यक व्यवस्थाएं की जाती हैं।