रायपुर. आज की विकसित संस्कृति में समाजवाद की परिभाषा जो भी हो उसका स्वरूप चाहे जो भी हो, परन्तु भाव समृद्ध विचारकों चिंतको ने खुले हृदय से महाराज अग्रेसन की समाजवादी व्यवस्था की प्रशंसा की है। उनकी सामाजिक उन्नयन की उदात्त अवधारणाओं की परिकल्पना को स्वीकार करते हुए उन्हें समाजवाद के प्रणेता के रूप में स्वीकार किया है। महाराज अग्रसेन के समाजवादी चिंतन पर काफी गंभीरता से विचार करना होगा तब हम उनकी समाजवादी व्यवस्था के गूढ़ रहस्यों को अनावृत कर पायेंगे। समाज की अधोसंरचना से विकास यात्रा का प्रारंभ होता है। समाजवाद का उन्होंने दो आधार स्तम्ब माना। उनकी सोच में यह था कि बिना बंधुत्व और सहअस्तित्व के बिना समाजवाद की प्राण प्रतिष्ठा संभव नहीं है।
जो व्यक्ति बिखरा हुवा है,असहज है, और अपनी भावी सुखद संभावनाओं के आकाश के विस्तार की ओर देखकर कातर भाव से अपने भविष्य को टटोल रहा हो उसे सबसे पहले आत्मीयता चाहिए, अपनापन चाहिए, बंधुत्व चाहिए, वह अपनी सामाजिक प्राण प्रतिष्ठा के लिए छटपटाता है, उस गंभीर विषय को केंद्र में रखकर महाराज अग्रसेन के राज्य में आने वाले व्यक्तियों को एक ईंट देने का निश्चय किया,ईंट का आंतरिक भाव है आधार अवलंबन ,जीवन के भावी दिशा के निर्माण में ईंट एक संकल्पशक्ति है,आवाहन है जो व्यक्ति को स्थायित्व प्रदान करते हुए समाज की मूलधारा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है।फिर उसकी अनिश्चितता को समाप्त करने के लिए पारिवारिक वातावरण को सहज बनाने को एक ऐसे वित्तीय प्रबंधन हो जिसमें निरंतरता हो।
उसके लिए उन्होंने पूरे राज्य से “एक रुपया” का प्रावधान किया,महाराज अग्रेसन का एक ईंट और एक रुपया कोई साधारण सतही चिंतन नहीं था,जनभागीदारी सुनिश्चित करते हुए व्यक्ति को समाज की मूल विकास की धारा से जोड़ना उनका मूल्य उद्देश्य था।यह उनकी समाजवादी परिकल्पना का स्वरूप कहा जा सकता है,इसलिए विचारकों ने महाराज अग्रसेन को समाजवाद का प्रणेता स्वीकार किया। पुरानी फिल्मों के गीतों भाव प्रधान हुआ करते थे,यंहा पर मुझे उस गीतकार की ये पंक्तियां सार्थक प्रासंगिक लगती है “एक अकेला थक जाएगा मिलकर बोझ उठाना ,साथी हाथ बढ़ाना ।सोचिए कितनी जीवंत समाजवादी परिकल्पना थी महाराज अग्रसेन जी की ।इस व्यवस्था और आचरण से समाज अहंकार के संक्रमण से भी बचा रहेगा और उसमे शीतलता और विनम्रता का सहज भाव सौरभ उनके व्यक्तित्व को निखारता रहेगा।इस लिए महाराज अग्रसेन जी के वंशज आज समाज में विकास की धारा को बहाते हुए अपनी परंपराओं की भाव संपदा को समृद्ध करते हुए समाज में प्रतिष्ठित, स्थापित और सन्मानित है।
लेखक- संदीप अखिल