Maharashtra Crisis LIVE Updates: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. राजभवन में शाम 7.30 बजे शपथ ली. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी शपथ दिलाई.
इसके साथ ही महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ग्रहण की. शिंदे ने मराठी में पद और गोपनीयता की शपथ ली. मंच पर उन्होंने बालासाहेब ठाकरे को याद किया.
जानिए कौन है शिंदे औऱ उनका बचपन ?
58 साल के एकनाथ शिंदे का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था. उनका बचपन काफी गरीबी में बीता. वो जब 16 साल के थे, तब उन्होंने अपने परिवार की मदद करने के लिए काफी समय तक ऑटो रिक्शा भी चलाया. इसके अलावा उन्होंने पैसे कमाने के लिए शराब की एक फैक्ट्री में भी काफी समय तक काम किया.
शिंदे को राजनीति में कौन लाया ?
यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि शिवसेना में जाने को लेकर शिंदे को प्रेरणा बाल ठाकरे से नहीं बल्कि तब के कद्दावर नेता आनंद दीघे से मिली. आनंद दीघे से ही प्रभावित होकर उन्होंने शिवसेना ज्वॉइन कर ली.
क्यों खफा हो गए शिंदे ?
एकनाथ शिंदे 2004 में पहली बार विधायक बने थे और बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद उन्हें शिवसेना के सबसे बड़े नेता के तौर पर देखा जाता था. हालांकि पिछले दो वर्षों में उनका ये कद घट गया और पार्टी में उनसे ज्यादा उद्धव ठाकरे के पुत्र और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे को ज्यादा प्राथमिकता दी जाने लगी, जिससे एकनाथ शिंदे खफा हो गए. असल में एकनाथ शिंदे पार्टी में सिर्फ नाम के लिए रह गए थे और उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था.
जब शिंदे ने खोया अपना परिवार
बता दें कि 2 जून 2000 को एकनाथ शिंदे ने अपने 11 साल के बेटे दीपेश और 7 साल की बेटी शुभदा को खो दिया था. वो अपने बच्चों के साथ सतारा गए थे. बोटिंग करते हुए एक्सीडेंट हुआ और शिंदे के दोनों बच्चे उनकी आंखों के सामने डूब गए. उस वक्त शिंदे का तीसरा बच्चा श्रीकांत सिर्फ 14 साल का था.
जब शिंदे को मिली अपने गुरू की राजनीतिक विरासत
शिंदे के गुरू की भी अचानक मौत हो गई. 26 अगस्त 2001 को एक हादसे में दीघे की मौत हो गई. उनकी मौत को आज भी कई लोग हत्या मानते हैं. दीघे की मौत के बाद शिवसेना को ठाणे क्षेत्र में खालीपन आ गया और शिवसेना का वर्चस्व कम होने लगा, लेकिन समय रहते पार्टी ने इसकी भरपाई करने की योजना बनाई और शिंदे को वहां की कमान सौंप दी. शिंदे शुरुआत से ही दीगे के साथ जुड़े हुए थे इसलिए वहां कि जनता ने शिंदे पर भरोसा जताया और पार्टी का परचम लहाराता रहा.
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