महासमुंद। जिले के बसना विकासखंड का ग्राम गढ़फुलझर अपने इतिहास के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के मिट्टी की परंपरागत कला को भी सहेजने और संवारने का काम भी बखूबी कर रहा है. छत्तीसगढ़ माटी कला बोर्ड ने यहां सिरेमिक ग्लोजिंग यूनिट लगाया है, जो न केवल परंपरागत कुम्हारों, बल्कि अन्य कलाकारों को भी छत्तीसगढ़ की माटीकला और टेराकोटा कला का प्रशिक्षण देकर स्थानीय लोगों को और हुनरमंद बना रहा है. टैराकोटा (इतालवी भाषा- ‘‘पकी मिट्टी’’) एक सेरामिक है. इससे बर्तन, पाइप, सतह के अलंकरण जो कि इमारतोइं में होते हैं, आदि बनाए जाते हैं.

कलेक्टर ने मिट्टी को लाने, उसे चिकना और साफ-सुथरा बनाने की दृष्टि से किए जाने वाले कार्यों के साथ-साथ मोल्ड बनाने, चाक एवं मशीन चाक के माध्यम से मिट्टी को अलग-अलग कलात्मक रूपों में ढालने, उसे सुखाने और उसे पकाने के लिए फर्नेस का उपयोग करने के साथ-साथ निर्मित कला कृतियों के फिनिसिंग करने के कार्य को देखा. उन्होंने यहां के ग्लेजिंग कार्यों को भी देखा, जिसकी सहायता से मिट्टी से बने कलाकृतियां ग्रेनाइट या कांच की तरह चमकने लगती है. कलेक्टर ने इस यूनिट के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा कलाकारों को प्रशिक्षित करने पर बल दिया.

बता दें कि इस ग्लेजिंग यूनिट में बने मिट्टी के कुल्हड़, दीये, गमले, फ्लावर पाट, सुराहियां, घोड़े, हाथी, मानव आकृतियां और तरह-तरह की कलाकृतियां सजावटी सामग्रियाँ अत्यधिक मनमोहक और आकर्षक बनती है. ये सब यहाँ की समूह की महिलाओं द्वारा बनाया जा रहा है. हाल ही में बीती धनतेरस पर लोगों ने अपने घरों में कच्ची मिट्टी के दीए जलाये हैं और लक्ष्मी पूजा, गोवर्धन पूजा, भाई दूज पर पक्की मिट्टी के नए दीपक जलायें हैं. महासमुंद शहर में जगह -जगह  टेराकोटा एवं मिट्टी के दीपक को बाजार में बिक्री की.

बरोंडाबाजार के कुम्हार परिवारों ने शहर के सिटी कोतवाली के सामने टेराकोटा कलात्मक पात्रों की दुकान लगाए थे. लोग यहां आकर्षक दीपक एवं अन्य सजावटी सामग्री खरीदने पहुंचे. कुम्हार परिवार ने बताया कि दीप पर्व पर दीए का ही खासा महत्व है, गरीब हो या अमीर सभी व्यक्ति के घर मिट्टी का दीपक जलता है, जो त्योहार की एकरूपता का परिचायक है। दीए की रोशनी से हर घर रोशन होता है। कलाकारों ने बताया कि त्योहार पर अच्छी ग्राहकी हुई और तुलसी पूजा तक होगी. ग्राहक भी दुकान की ओर रुख करने लगे हैं.

महासमुन्द जिला अपनी सांस्कृतिक इतिहास के लिए प्रसिद्ध है. यह क्षेत्र ‘सोमवंशीय सम्राट’ द्वारा शासित ‘दक्षिण कोशल’ की राजधानी थी, यह सीखने का केन्द्र भी हैं. यहाँ बड़ी संख्या में मंदिर हैं, जो अपने प्राकृतिक और सौंदर्य के कारण हमेशा आगंतुकों को आकर्षित करते हैं. यहाँ के मेले, त्यौहार लोगों के जीवन का हिस्सा बन गए हैं. दक्षिण कोशल यानी वर्तमान छत्तीसगढ़ के सिरपुर की स्थिति सभी अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थलों के शीर्ष पर है. सिरपुर, पवित्र महानदी नदी के तट पर स्थित है,यह पूरी तरह से सांस्कृतिक और स्थापत्य कला का विलय है. पूर्व में (सोमवंशीय सम्राटों के समय) में सिरपुर ‘श्रीपुर’ के नाम से जाना जाता था, और यह दक्षिण कोशल की राजधानी थी. महत्वपूर्ण और मूल प्रयोगों के साथ ही धार्मिक, आध्यात्मिक, ज्ञान और विज्ञान के मूल्यों की वजह से सिरपुर की स्थिति भारतीय कला के इतिहास में बहुत ही खास है.