कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। शहर के अचलेश्वर महादेव मंदिर में आज महाशिवरात्रि पर्व पर सुबह से ही बोल बम और हर हर महादेव के जयकारे लग रहे हैं। 300 साल प्राचीन अचलेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग को हटाने के लिए सिंधिया राजवंश से लेकर अंग्रेजों तक ने जोर-आजमाइ‌श की लेकिन शिवलिंग को कोई हिला तक नहीं पाया, यही वजह है कि इस शिवलिंग को अचलनाथ या अचलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

मान्यता है कि आज महाशिवरात्रि के दिन अचलेश्वर महादेव मंदिर में की शरण में आने वाले भक्तों की हर मन्नत पूरी होती है। यही वजह है कि महाशिवरात्रि पर लाखों भक्त अचलेश्वर मंदिर में दर्शन और पूजा अर्चना करने देर रात से ही लाइनों में लग अपनी बारी का इंतजार कर रहे है। मंदिर प्रबंधन ने गर्भ गृह में दर्शन लाभ लेने के लिए 6 प्रवेश द्वार भी बनाये है। कोरोना संकट से मिली राहत के बाद श्रद्धालुओं का उमड़ा जनसैलाब आस्था में डुबकी लगाता हुआ नजर आ रहा है।

ग्वालियर के लश्कर इलाके में स्थित है, भगवान अचलेश्वर महादेव का मंदिर। सैंकड़ों साल पुराना ये मंदिर अपने गौरवशाली इतिहास और परंपरा के चलते भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। यूं तो हर सुबह चार बजे अचलेश्वर महादेव के पट खुलते है फिर जलाभिषेक के साथ पूजन होता है और प्रात: आरती के साथ ही भक्तों के दर्शन का सिलसिला शुरु हो जाता है, लेकिन आज महा शिवरात्रि के दिन बाबा अचलेश्वर महादेव का विशेष श्रंगार किया गया है। भगवान भोले को अर्पित करने छप्पन भोग भी तैयार किये गए है। जिस प्रसादी को भगवान भोले को अर्पित कर श्रद्धालुओं में वितरित किया जा रहा है।

सबसे खास इस मंदिर के नाम को लेकर छिपी गौरवशाली कहानी है। प्राचीनकाल में सिंधिया राजवंश के लोगों ने ग्वालियर पर कब्जा जमाया। राजकाज चलाने के लिए सिंधिया राजाओं ने महाराजबाड़ा बनवाया, इसके साथ ही किले के नीचे जयविलास महल बनाया था, महाराजबाड़ा से जयविलास महल तक जाने वाले रास्ते में पेड़ के नीचे शिवजी का मंदिर था। सिंधिया राजा ने इस मंदिर को रास्ते से हटाने के लिए कहा। जब राजा ने शिवलिंग को हटाने की कोशिश की तो ये शिवलिंग हिला तक नही। बाद इसे खोदने की कोशिश हुई लेकिन गहराई तक शिवलिंग निकलता चला गया। आखिर में राजा ने हाथियों से रस्सी बांधकर शिवलिंग को उखाडना चाहा, लेकिन हाथियों ने भी जोर लगा लगा कर जबाव दे दिया। इसके बाद राजा को सपना आया, जिसमें शिवजी ने प्रकट होकर कहा कि मैं अचल हूं यहां से मुझे हटाने की कोशिश मत करो। दूसरे दिन राजा ने कारीगर बुलवाए और फिर रास्ते पर स्थित इस मंदिर को भव्य बनवाया। तब से इस मंदिर को अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।

अचलेश्वर महादेव के मंदिर में लोग सुबह से ही जल, दूध, दही से अभिषेक कर रहे है। वहीं बेल-पत्र, धतूरा के साथ अचलेश्वर महादेव की पूजा-अर्नचना की जा रही है।

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