रेखराज साहू/राजकुमार भट्ट की विशेष रिपोर्ट
महासमुंद/रायपुर. 
छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा सीटों में छोटा सा लेकिन खूबसूरत लोकसभा सीट है महासमुंद. पड़ोसी राज्य ओडिसा को छत्तीसगढ़ से जोड़ने वाला यह इलाका छत्तीसगढ़ी और ओडिसा की संस्कृति से रचा-बसा है. महानदी, सोढ़ूर, पैरी का तटीय वाला यह क्षेत्र दक्षिण कौसल की राजधानी भी रही है. आदिम सभ्यता और विरासत को दिखाने दर्शाने वाला सिरपुर भी इस सीट का हिस्सा है. छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहलाने वाली धार्मिक नगरी राजिम भी इस इलाके में शामिल है. जल-जंगल-जमीन से भरपूर सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से समृद्ध महासमुंद राजनीतिक विरासत का सबसे ताकतवर केन्द्र भी है.

महासमुंद अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री रहे पं. रविशंकर शुक्ल के प्रभाव क्षेत्र में आने वाली सीट है. इस सीट से पंडित रविशंकर शुक्ल बेटे विद्याचरण शुक्ल ने 1957 में चुनाव जीत कर राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया, और एक बार नहीं बल्कि छह बार लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया. उनके साथ श्यामाचरण शुक्ल ने भी देश और प्रदेश की राजनीति में अपनी पहचान बनाई. इस सीट से केवल शुक्ल परिवार ने ही नहीं, बल्कि बलौदा बाजार के हिस्से के तौर पर मिनी माता ने भी छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद के तौर पर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाई.

आपातकाल ने तोड़ा कांग्रेस का भ्रम

शुक्ल परिवार के माध्यम से कांग्रेस के इस गढ़ में आपात काल को लेकर लोगों के देशव्यापी आक्रोश भी देखने को मिला. 1977 में हुए चुनाव में जनता दल के बृजलाल वर्मा ने जीत हासिल कर आने वाले दिनों का संकेत दे दिया. लेकिन कांग्रेस का असर खत्म होने में खत्म लगा. विद्याचरण शुक्ल के कांग्रेस छोड़कर विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ जाने का फायदा तो नहीं मिला, लेकिन उनके स्थान पर कांग्रेस के जरिए संत कवि पवन दीवान ने अपनी राजनेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई. पवन दीवान ने 1991 और 1996 में हुए चुनाव में जीत हासिल की. कांग्रेस के इस गढ़ में भाजपा ने पहली बार 1998 में जीत का परचम लहराया. जब यहां से भाजपा की टिकट पर चंद्रशेखर साहू चुनाव जीते.

2004 में अपने ही गढ़ में कांग्रेस से हारे विद्याचरण शुक्ल

महासमुंद लोकसभा सीट में 2004 का चुनाव सबसे दिलचस्प चुनाव था. क्योंकि इस चुनाव में कांग्रेस बगावत कर विद्याचरण शुक्ल भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े थे. तब विद्याचरण शुक्ल के सामने उनके सबसे घोर विरोधी नेता कांग्रेस के दिग्गज नेता और छत्तीसगढ़ प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी मैदान में थे. सबको लग रहा था विद्याचणर को हराना जोगी के लिए आसान नहीं होगा. लेकिन शुक्ल परिवार अपने गढ़ में अजीत जोगी के हाथों एक लाख से अधिक मतों से चुनाव हार गए थे.

2009 में भाजपा के पहली बार खोला यहां से खाता

2009 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा ने शानदार वापसी की. यहां से चंदूलाल साहू भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े. फिर इसके बाद 2014 में वे दोबारा चुनाव लड़े और जीते. तब चंदूलाल साहू के सामने अजीत जोगी जैसे नेता सामने तो थे साथ ही इस चुनाव में उनके हम नाम वाले 10 और चंदूलाल भी चुनाव लड़े थे. लेकिन मोदी लहर ने भाजपा के चंदूलाल को हारने नहीं दिया और हारे तो अजीत जोगी.

अब वरिष्ठ विधायक बनाम पूर्व विधायक में है मुकाबला

महासमुंद लोकसभा सीट में इस बार मुकाबला कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक धनेन्द्र साहू और भाजपा के पूर्व विधायक चुन्नी लाल साहू के बीच है. धनेन्द्र साहू पूर्व में लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और उनके पास लंबा अनुभव है, जबकि चुन्नीलाल पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. कुल मिलाकर प्रदेश में राजनीतिक तौर पर सबसे चर्चित इस सीट में इस बार साहू समाज के दो चेहरों के बीच सीधा मुकाबला है. सवाल यह है कि क्या इस सीट पर कांग्रेस की हो पाएगी वापसी ? क्या मोदी लहर के आसरे 2014 में मिली इस सीट पर जीत का हैट्रिक बना पाएगी बीजेपी? क्या मौजूदा सांसद का टिकट काटने से बीजेपी को मिलेगा फायदा और क्या कांग्रेस सत्ता परिवर्तन के बाद अपने वरिष्ठ विधायक के जरिए हासिल कर पाएंगी महासमुंद की सत्ता? 

महामसुंद लोकसभा 8 विधानसभा सीटें

महामसुंद लोकसभा संसदीय क्षेत्र में महासमुंद जिले की चार विधानसभा सीटें हैं- महामसुंद, खल्लारी, सरायपाली और बसना. गरियाबंद जिले की दो विधानसभा सीटें हैं- बिंद्रानवागढ़ और राजिम. धमतरी जिले की दो विधानसभा सीटें- धमतरी और कुरूद शामिल है. इनमें से पांच सीटों पर कांग्रेस का और शेष तीन सीटों पर भाजपा का कब्जा है.