Mahavir Jayanti 2025: रायपुर. छत्तीसगढ़ की धरती पर जैन धर्म की जड़ें अत्यंत गहराई तक फैली हुई हैं. यह प्रदेश न केवल विविधता से भरपूर धार्मिक स्थलों का केंद्र है, बल्कि यहां जैन धर्म का इतिहास भी हजारों वर्षों पुराना और समृद्ध रहा है. प्राचीन कौशल राज्य के नाम से प्रसिद्ध यह भू-भाग ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है, जहां आज भी खुदाई के दौरान जैन तीर्थंकरों की दुर्लभ प्रतिमाएं प्राप्त होती रहती हैं.
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प्रमुख स्थल और पुरातात्विक प्रमाण
- राजिम – 1600 वर्ष पुरानी भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा खुदाई में प्राप्त.
- दमऊदरहा (चांपा के पास) – ऋषभ तीर्थ कहा जाता है. सातवाहन शासक कुमार वारदत्त के काल का शिलालेख मिला, जिसमें गायों के दान का उल्लेख है. ऋषभदेव की प्राचीन प्रतिमा भी यहां स्थित है.
- अडमार (बिलासपुर से 124 किमी) – अष्टभुजी माता मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की 2 फीट ऊंची प्रतिमा.
- उदयपुर (अंबिकापुर से 40 किमी) – 17 टीले, जिनमें प्राचीन जैन मंदिरों के भग्नावशेष हैं. 6वीं शताब्दी की ऋषभदेव की 104 सेमी प्रतिमा और वैष्णव, शैव व जैन संप्रदायों के 30 मंदिर स्थित हैं.
- आरंग (रायपुर से 35 किमी) – भांड देवल मंदिर, 9वीं सदी का ऐतिहासिक जैन मंदिर है, जो जैन स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है. इसमें अजीतनाथ, नेमीनाथ और श्रेयांसनाथ की 6 फीट ऊंची काले ग्रेनाइट की प्राचीन प्रतिमाएं विराजमान हैं.
- धनपुर (पेंड्रारोड से 16 किमी) – 25 फीट ऊंची ऋषभदेव की शैलोत्कीर्ण प्रतिमा. अनेक जैन मंदिरों के भग्नावशेष प्राप्त.
- डोंगरगढ़ (चंद्रगिरि तीर्थक्षेत्र) – राजनांदगांव जिले में स्थित यह क्षेत्र धार्मिक और शिल्पीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यहां भगवान महावीर की प्राचीन मूर्ति, नवग्रह युक्त प्रतिमाएं और भव्य स्थापत्य उपलब्ध हैं.
- जोगीमठ (बैकुंठपुर से 32 किमी) – 8वीं शताब्दी की दो ऋषभदेव प्रतिमाएं और जैन मंदिर का भग्नावशेष.
- सिरपुर (महासमुंद) – 9वीं शताब्दी की नवग्रह धातु से निर्मित ऋषभदेव प्रतिमा. यहां के प्राचीन जैन मंदिर और धार्मिक आयोजन प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध बनाते हैं.
- ताला (बिलासपुर से 30 किमी) – खुदाई में प्राप्त ऋषभदेव की प्राचीन प्रतिमा.
- रतनपुर – कल्चुरी काल की 12वीं शताब्दी की ऋषभदेव की प्रतिमा और अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियां.
- मल्हार – अत्यंत प्राचीन ऋषभदेव की प्रतिमा और अन्य जैन अवशेष.
- रामगढ़ – पहाड़ी की प्राचीन नाट्यशाला में जैन धर्म का उल्लेख मिलता है.
- सरगुजा (डीपाडीह) – दूसरी-तीसरी शताब्दी की जैन प्रतिमाएं. यहां बैगा, केंवट और अन्य जनजातियां आज भी तीर्थंकरों को श्रद्धा से पूजती हैं. रायपुर के संग्रहालयों और निजी संग्रह में सैकड़ों जैन प्रतिमाएं संरक्षित हैं.
अन्य महत्वपूर्ण स्थल
नेतनगर, नर्राटोला, कुर्रा, बम्हनी, कांकेर, जगदलपुर, गढ़बोदरा, पंडरिया, पेंड्रा, पदमपुर, डोंगरगढ़, गुंजी, खरौद, पाली, महेशपुर, शिवरीनारायण, दुर्ग, नगपुरा, भोरमदेव आदि क्षेत्रों में भी जैन धर्म की अमिट छाप देखी जा सकती है.
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