हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल माहेश्वरी समाज का 5156वां उत्पत्ति दिवस 29 मई दिन सोमवार को मनाया जाएगा. धर्मग्रंथों के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे. माहेश्वरी का अर्थ है (महेश यानी शंकर और वारि यानी समुदाय या वंश) यानी भगवान महेश का वंश (परिवार), जिस पर भगवान शिव की कृपा है. इसलिए माहेश्वरी समाज के लोग, शिव परिवार को अपना कुलदेवता मानते हैं.

भगवान शिव की कृपा से ही माहेश्वरी समुदाय ने विशेष पहचान पाई और यह दिन उसी कृपा का स्मरण दिवस है. ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की नवमी को महेश जयंती मनाई जाती है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव के वरदान से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई है. महेश यानी शंकर और वारि यानी समुदाय या वंश. माहेश्वरी का अर्थ हुआ जिस पर भगवान शिव की कृपा है. धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे.

राजा सुजान सिंह को शाप दिया था

माहेश्वरी समाज पहले क्षत्रिय समाज से थे. खंडेला नगर के राजा सुजान सिंह को उत्तर दिशा में जाने से रोका गया था, लेकिन उन्होंने उत्तर दिशा में जाकर सप्तऋषि की तपस्या को भंग किया था. तभी सप्त ऋषियों ने राजा और उनके 72 उमराव को शाप दे दिया था और वह पत्थर बन गए थे. तब राजा की रानी चंद्रावती उनके साथ 72 उमरावों की स्त्रियों को लेकर सप्तऋषि की शरण में पहुंची. ऋषि ने रानी चंद्रावती को भगवान महेश के अष्टाक्षर मंत्र का जाप करने को कहा. इसके बाद भगवान शिव ने उनको पुनः मनुष्य रूप में वापस लाए. पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य या व्यापार को अपना लिया. एक अर्थ में हिंसा का मार्ग त्यागकर अहिंसा और सेवा को अपनाया. आज माहेश्वरी समाज व्यापारिक समुदाय के रूप में अपनी विशेष पहचान रखता है.

देश में प्रमुख उद्योगपति और हस्तियां माहेश्वरी समाज के लोग

माहेश्वरी समाज से भारतेंदु हरिश्चंद्र, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, बाबू गुलाबराय, विष्णु प्रभाकर जैसे प्रमुख साहित्यकार रहे हैं. उद्योगपतियों में एक लंबी फेहरिस्त है. माहेश्वरी समाज से ताल्लुक रखने वालों में गौतम अडानी, मुकेश अंबानी, राहुल बजाज, सुनील मित्तल, लक्ष्मी निवास मित्तल, कुमार मंगलम बिड़ला, शोभना भरतिया आदि शामिल हैं.

माहेश्वरी वैष्णव बनियों का एक समुदाय है, जो पश्चिमी भारत में राजस्थान राज्य से उत्पन्न हुआ है. वे मारवाड़ी समुदाय के भीतर एक उप-समूह हैं, जो पूरे भारत में पाए जाते हैं. राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर, पोखरण से समाज के लोग निकले हुए हैं. राजस्थान में पानी की कमी की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में फैल गए. आज देश में प्रमुख उद्योगपति माहेश्वरी समाज से संबंध रखते है.

शिवलिंग की नहीं प्रतिमा या तस्वीर की करते हैं पूजा

आज भी राजस्थान के सीकर के पास लोहागढ़ नाम से स्थान है. जहां लोग स्नान कर भगवान महेश की प्रार्थना करते हैं. तभी से माहेश्वरी समाज महेश नवमी का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाता आ रहा है. माहेश्वरी समाज स्वयं को भगवान महेश और पार्वती की संतान मानते हैं. माहेश्वरी में शिवलिंग स्वरूप में पूजा का विधान नहीं है. माहेश्वरी भगवान महेश, पार्वती और गणेश जी की एकत्रित प्रतिमा या तस्वीर की पूजा करते हैं. जो 72 उमराव थे, उनके नाम पर एक-एक जाति बनी, जो 72 गोत्र कहलाए.

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