देशभर में नवरात्रि का त्योहार मनाया जा रहा है, लेकिन भारत में ही कई जगह हैं, जहां पर महिषासुर का शहादत दिवस भी मनाया जाता है. यहां दुर्गा की पूजा नहीं होती. कुछ ऐसे समुदाय हैं, जो महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं और नवरात्रि के दौरान महिषासुर की मौत का शोक मनाते हैं.
बता दें कि महिषासुर की पूजा झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के अलावा दक्षिण के भी कई राज्यों में होती है. कर्नाटक के मैसूर में तो बकायदा महिषासुर की विशाल प्रतिमा भी लगी है. नवरात्रि के दौरान कई जगहों पर ‘महिषासुर शहादत दिवस’ का आयोजन भी किया जाता है. महिषासुर की पूजा मुख्य रूप से असुर समुदाय के लोगों द्वारा की जाती है. असुर भारत की एक सबसे प्राचीन मानी जाने वाली जनजातियों में से एक है. इनकी आबादी का बड़ा हिस्सा झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में रहता है.
दुर्गा ने देवताओं के साथ मिलकर की घोखे से महिषासुर की हत्या
असुर विश्व की उन चुनिंदा जनजातियों में से हैं, जो लौह अयस्क को खोजने और लौह धातु से हथियार बनाने के लिए जाने जाते हैं. इस जनजाति के लोग खुद को पौराणिक असुरों का वंशज मानते हैं. इनके लिए महिषासुर राजा हैं. असुर समुदाय का मानना है कि दुर्गा ने अनेक देवताओं के साथ मिलकर घोखे से महिषासुर की हत्या की. असुर समुदाय पिछले कुछ वर्षों से दुर्गा के हिंसक रूप वाली मूर्ति पर आपत्ति भी व्यक्त कर चुका है. उनका कहना है कि यह सिर्फ उनके पूर्वजों का ही नहीं बल्कि पूरे असुर आदिवासी समाज का अपमान है.
छत्तीसगढ़ के आदिवासी मानते हैं अपना वंशज
छत्तीसगढ़ में जशपुर जिले के मनौरा विकासखंड में पौराणिक पन्नों से निकलकर असुर आज भी निवासरत हैं. यह कहते हैं कि हम अपने पूर्वज की मृत्यु पर खुशी कैसे मना सकते हैं. खुद को राक्षसराज महिषासुर का वंशज बताने वाली यह जनजाति जशपुर के मनोरा विकासखंड के जरहापाठ, बुर्जुपाठ, हाडिकोन, दौनापठा स्थानों पर निवास करती है. इसके अलावा बस्तर के कुछ हिस्सों में भी आदिवासी समुदाय महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं. कांकेर में संपूर्ण मूल आदिवासी समाज भी नवरात्र पर शोक मनाते हैं.
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान मनाया जाता है शोक
बता दें कि पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिला स्थित अलीपुरदुआर के माझेरडाबरी चाय बागान के असुर दुर्गा पूजा के दौरान मातम मनाते हैं. अलीपुरदुआर का असुर समुदाय नवरात्रि के दौरान नए कपड़े नहीं पहनता, न ही दिन में घर से बाहर निकलता है.
झारखंड में आदिवासी मानते है अपना पूर्वज
वहीं झारखंड के गुमला में आदिवासी समुदाय के कुछ ऐसे ही लोग रहते हैं. गुमला की पहाड़ियों में असुर नाम की जनजाति रहती है. असुर जनजाति महिषासुर को अपना पूर्वज मानती है. झारखंड के सिंहभूम इलाके की कुछ जनजाति भी महिषासुर को अपना पूर्वज मानती है. इन इलाकों में नवरात्रों के दौरान महिषासुर का शहादत दिवस मनाया जाता है.
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महिषासुर के नाम पर पड़ा मैसूरू का नाम
एक किवदंती के मुताबिक कर्नाटक के मैसूर शहर का नाम महिषा सुर की वजह से ही पड़ा है. कई इतिहासकार भी इसका समर्थन करते हैं. स्थानीय किस्से कहानियों के मुताबिक असुर महिषासुर के नाम पर इस जगह का नाम मैसूरू पड़ा. मैसूरू का मतलब महिषासुर की धरती होता है. ये बाद में बदलकर मैसूर हो गया. यहां की लोककथाओं के मुताबिक महिषासुर को मां चामुंडेश्वरी ने मारा था. मैसूर की एक पहाड़ी का नाम ही चामुंडेश्वरी देवी के नाम पर है. इस पहाड़ी पर महिषा सुर की मूर्ति लगी है.
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