देश के उच्च शिक्षा तंत्र में एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को एक ऐसे विधेयक को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई जैसे मौजूदा नियामक निकायों की जगह एक नया एकल उच्च शिक्षा नियामक स्थापित किया जाएगा। प्रस्तावित विधेयक, जिसे पहले भारत का उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) विधेयक कहा जा रहा था, अब विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण विधेयक के नाम से जाना जाएगा। यह विधेयक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रस्तावित एकल उच्च शिक्षा नियामक की अवधारणा को लागू करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है। इस नए नियामक का उद्देश्य विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) जैसे निकायों की जगह लेकर उच्च शिक्षा व्यवस्था को अधिक सरल, पारदर्शी और प्रभावी बनाना है।

एक अधिकारी ने बताया कि विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण की स्थापना से संबंधित विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। वर्तमान में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) गैर-तकनीकी उच्च शिक्षा क्षेत्र की देखरेख करता है, जबकि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) तकनीकी शिक्षा के नियमन की जिम्मेदारी संभालती है। वहीं, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) शिक्षकों की शिक्षा से जुड़े संस्थानों के लिए नियामक निकाय के रूप में कार्य करती है।

 मेडिकल-लॉ कॉलेज दायरे में नहीं

प्रस्तावित आयोग को देश में उच्च शिक्षा के एकल नियामक के रूप में स्थापित किया जाएगा, हालांकि मेडिकल और विधि (लॉ) कॉलेज इसके दायरे से बाहर रहेंगे। आयोग के लिए तीन प्रमुख कार्य निर्धारित किए गए हैं. विनियमन, मान्यता और व्यावसायिक मानकों का निर्धारण। वित्त पोषण को चौथे क्षेत्र के रूप में माना गया है, लेकिन फिलहाल इसे इस नियामक के अधीन लाने का प्रस्ताव नहीं है।

एचईसीआई (उच्च शिक्षा आयोग) के अंतर्गत चार प्रमुख वर्टिकल (प्रभाग) होंगे:-

राष्ट्रीय उच्च शिक्षा विनियामक परिषद: यह चिकित्सा और विधि शिक्षा को छोड़कर उच्च शिक्षा के सभी क्षेत्रों का नियमन करेगी।

राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद: उच्च शिक्षा संस्थानों में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्यायन (एक्रीडिएशन) से जुड़े कार्यों की जिम्मेदारी निभाएगी।

सामान्य शिक्षा परिषद (जनरल एजुकेशन काउंसिल): शिक्षण के तौर-तरीकों, पाठ्यक्रम ढांचे और शैक्षणिक मानकों का निर्धारण करेगी।

उच्च शिक्षा अनुदान परिषद: उच्च शिक्षा से जुड़े वित्त पोषण और अनुदान से संबंधित मामलों को देखेगी, हालांकि इस पर सरकार का नियंत्रण बना रहेगा।

क्या होगा फायदा

रिपोर्ट के मुताबिक अधिकारियों का कहना है कि नए नियामकीय फ्रेमवर्क से उच्च शिक्षा में गवर्नेंस सरल होगी और विभिन्न नियामक संस्थाओं के बीच होने वाला ओवरलैप कम होगा। इससे सरकारी और निजी, दोनों तरह के संस्थानों में शैक्षणिक गुणवत्ता और सीखने के परिणामों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा। शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, “इस संरचनात्मक विभाजन का उद्देश्य हितों के टकराव को रोकना, सूक्ष्म प्रबंधन (माइक्रोमैनेजमेंट) को कम करना और एक अधिक पारदर्शी तथा प्रभावी नियामकीय ढांचा तैयार करना है।”

प्रस्तावित कानून के तहत उच्च शिक्षा के कार्यों का एक सुव्यवस्थित विभाजन किया जाएगा। नियमन, प्रत्यायन (एक्रीडिएशन), शिक्षण-प्रशिक्षण के मानक तय करना और वित्त पोषण इन सभी जिम्मेदारियों को अलग-अलग वर्टिकल्स के माध्यम से संचालित किया जाएगा। इस व्यवस्था का उद्देश्य किसी एक संस्था में लंबे समय से चली आ रही बहु-शक्तियों के केंद्रीकरण को समाप्त करना और एक अधिक संतुलित तथा जवाबदेह नियामकीय ढांचा स्थापित करना है।

नए विधेयक के समर्थकों का कहना है कि यह उच्च शिक्षा क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही प्रशासनिक खामियों को दूर करने में सक्षम है। एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्रों से टकराने वाले कई नियामक निकायों के चलते अब तक अक्सर विरोधाभासी नियम बने, जिससे मंजूरियों में देरी और संस्थानों को अनावश्यक जटिलताओं का सामना करना पड़ा। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (पूर्व में कानपुर विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक के अनुसार, “एकल नियामक से शैक्षणिक मानकों में सामंजस्य आएगा, समान गुणवत्ता मानक सुनिश्चित होंगे और विश्वविद्यालयों को पाठ्यक्रम, शिक्षण पद्धतियों तथा शोध में नवाचार के लिए अधिक स्वतंत्रता मिलेगी। साथ ही, यह व्यवस्था संस्थानों को परिणामों के प्रति अधिक जवाबदेह भी बनाएगी।”

2018 में भी इस बिल का तैयार हुआ था ड्राफ्ट

यूनिफाइड रेगुलेटर, यानी एक ही संस्था द्वारा पूरी उच्च शिक्षा व्यवस्था की निगरानी का विचार कई वर्षों से चर्चा में रहा है। एचईसीआई विधेयक का पहला मसौदा वर्ष 2018 में सामने आया था। उस समय इसका उद्देश्य विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को समाप्त कर एक नया केंद्रीय आयोग स्थापित करना था, लेकिन इसे राज्यों के स्तर पर कड़ा विरोध झेलना पड़ा। राज्य सरकारों का तर्क था कि इस व्यवस्था से उच्च शिक्षा पर केंद्र सरकार का अत्यधिक नियंत्रण स्थापित हो जाएगा। इसी विरोध के चलते विधेयक पर आगे की प्रक्रिया ठप पड़ गई थी।

अब जो नया विधेयक लाया जा रहा है, उसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में प्रस्तुत दृष्टिकोण को लागू करने की दिशा में कदम माना जा रहा है। एनईपी 2020 में उच्च शिक्षा प्रणाली को आधुनिक, सरल और अधिक प्रभावी बनाने के लिए एकल नियामक व्यवस्था की सिफारिश की गई है, जो तकनीकी शिक्षा और शिक्षक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा के सभी पहलुओं की देखरेख कर सके।

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