रायपुर। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा एक व्यक्ति के नेत्रदान के द्वारा दो दृष्टिहीन व्यक्तियों के जीवन में प्रकाश आ सकता है, स्वयं तथा अपने परिवार के सदस्यों को नेत्र दान के लिए प्रेरित कर नेत्र दान को अपनी पारिवारिक परम्परा बनाएं. डॉ दिनेश मिश्र ने कहा किसी दृष्टिहीन व्यक्ति के कठिनाई भरे जीवन का अंदाज सिर्फ आप कुछ पलों के लिए अपनी आँखें बंद कर ही लगा सकते हैं. आँखें बंद करते ही जीवन के सुन्दर दृश्य प्राकृतिक छटायें, सूर्य, जल, पृथ्वी, आकाश व जनजीवन के विभिन्न रूप अदृश्य हो जाते हैं, वहीं मन में एक भय व असुरक्षा की भावना समाज जाती है और तत्काल आँखें खोलने पर मजबूर हो जाते हैं. प्रकाश व दृष्टि से परे, जीवन का एक दूसरा रूप यह भी जानिए कि पूरी दुनिया में करीब 3 करोड़ लोग पूरी तरह से दृष्टिहीन हैं. भारत में 1 करोड़ 20 लाख लोग पूरी तरह से दृष्टिहीन हैं. 80 लाख लोगों की एक आँख खराब है तथा 4-5 करोड़ लोग कम दृष्टि के कारण घर से बाहर निकलने, मन-माफिक काम करने, चलने-फिरने से पूरी तरह बाधित हैं.

प्रकृति ने जीव को दृष्टि एक ऐसा अमूल्य उपहार दिया है जिसकी कोई कीमत नहीं आंकी जा सकती है। जिस अंधकार में हम एक क्षण बिताने की कल्पना नहीं कर सकते, उसी गहन अंधकार में कितने ही लोग जिन्दगी गुजारने को मजबूर हैं. क्या इनके जीवन में प्रकाश की कोई किरण आ सकती है. इस प्रश्न का उत्तर नि:संदेह हाँ, इनमें से काफी लोग मरणोपरांत नेत्रदान से लाभ उठा सकते हैं. आंखों के स्वच्छ पटल अथवा कार्निया में सफेदी आने से होने वाले अंधत्व के उपचार के लिए नेत्र दान से प्राप्त कॉर्निया मिलना आवश्यक है.

डॉ. मिश्र ने कहा नेत्रदान वह प्रक्रिया है जिसमें मानव नेत्रदान द्वारा दान-दाताओं से उनकी मृत्यु के बाद ग्रहण किये जाते हैं. नेत्रदान से प्राप्त इन आँखों की स्वच्छ कार्निया को ऐसे दृष्टिहीन व्यक्ति जिनका जीवन कार्निया में सफेदी आ जाने से अंधकारमय हो गया है, को प्रत्यारोपित कर नेत्र ज्योति लौटायी जा सकती है.

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा हर स्वस्थ व्यक्ति जिसकी आँखें सही सलामत है, नेत्रदान की घोषणा कर सकता है. ऐसे व्यक्ति जो वायरल हिपेटाईटिस, पीलाया, यकृत रोग, रक्त कैंसर, टी.बी., मस्तिष्क ज्वर, सड्स् से संक्रमित होने से नेत्र नहीं लिये जाते। अप्राकृतिक मौत, एक्सीडेंट की हालत में मजिस्टे्रट की अनुमति से नेत्र ग्रहण किये जा सकते हैं। ऐसे दृष्टिहीन व्यक्ति जिनकी आँखों की कार्निया, किसी बैक्टीरिया, वायरल संक्रमण रोग, दुर्घटना, रासायनिक पदार्थों के गिरने जैसे एसिड, क्षार, घाव, अल्सर आदि के बाद सफेद व अपारदर्शी हो गई हो तथा उससे दृष्टि एकदम कम हो गई हो, का इलाज नेत्रदान से प्राप्त कार्निया प्रत्यारोपण से संभव है। लेकिन रेटिना या आँखों के परदे की बीमारी, परदा उखडऩा, लेंस की बीमारी, मोतियाबिंद, आप्टिक नर्व की बीमारी व चोटों का इलाज कार्निया प्रत्यारोपण से संभव नहीं है. जिन दृष्टिहीनों की आँख पूरी की पूरी, कैसर, चोट या संक्रमण से निकालना पड़ा हो, उन्हें नेत्रदान से लाभ नहीं होता.

डॉ. मिश्र ने कहा हमारे देश में पिछले 30 वर्षों से राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है. 25 अगस्त से 8 सितम्बर तक चलने वाला यह पखवाड़ा राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जाता है. लेकिन आज भी नेत्रदान की संख्या पिछले कई वर्षों में अंगुलियों में गिनने लायक ही है. जिसके कारण नेत्रदान से लाभांवित होने वाले मरीजों की संख्या अल्प ही रही. जबकि देश के कुछ प्रदेशों में नेत्रदाताओं की संख्या आश्यचर्यजनक रूप से बढ़ी है. नेत्रदान को महादान की संज्ञा दी गई है, भारत में करीब 25 लाख मरीज कार्निया के रोगों से पीडि़त हैं जो नेत्रदान से प्राप्त आँख की बाट जोह रहे हैं, इसमें प्रतिवर्ष 20 हजार दृष्टिहीनों की संख्या जुड़ती जा रही है. जबकि शासकीय व निजी स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रयासों के बावजूद देश में एक साल में करीब बारह हजार नेत्र प्रत्यारोपण के ऑपरेशन हो पाते हैं. श्रीलंका जैसा छोटा देश भी नेत्रदान के मामले में पूरे भारतवर्ष से आगे है.

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा पहले शिक्षा का पर्याप्त प्रसार न होने से लोगों में तरह-तरह के अंधविश्वास तथा भ्रांतियाँ जैसे कुछ लोग यह मानते हैं कि नेत्रदान देने से व्यक्ति अगले जन्म में जन्मांध होगा, तो कुछ लोग भावनात्मक कारणों से मृत शरीर के साथ चीर-फाड़ उचित नहीं मानते तथा नेत्र निकालने की अनुमति नहीं प्रदान करते हैं. तीसरा कारण है – जागरूकता व सामाजिक जिम्मेदारी का अभाव, जबकि भारत में दानवीरता के किस्से हमें सुनने को मिलते रहे हैं। बुद्ध दधीचि, बली व कर्ण जैसे दानवीर भारत की जनता के मानव में रचे बसे हैं, उसके बाद भी नेत्रदान की कम संख्या इस पुनीत कार्यक्रम को आगे बढऩे से रोक रही है.

डॉ. मिश्र ने कहा कार्निया प्रत्यारोपण के ऑपरेशन में अच्छे परिणाम के लिए आवश्यक है कि दान देने वाले व्यक्ति की आँखें मृत्यु के उपरांत जल्द से जल्द निकाल ली जाए तथा प्रत्यारोपण का ऑपरेशन भी यथासंभव शीघ्र सम्पन्न हो सके. फिर भी छ: घंटों के अंदर दानदाता के शरीर से नेत्र निकाल लिये जाने चाहिए एवं 24 घंटों के अंदर प्रत्यारोपित हो जाने पर अच्छे परिणाम आते हैं.

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कई बार दान की घोषणा के बाद भी दानकर्ता के रिश्तेदार इस आशंका से अस्पताल में खबर नहीं करते कि मृत शरीर की चीर-फाड़ कर दुर्दशा क्यों की जाए, लेकिन इस मानसिकता को बदलना आवश्यक है जो निरंतर प्रचार व जन जागरण से ही संभव है.

डॉ. मिश्र ने बताया छत्तीसगढ़ में स्थान-स्थान पर ऐसे सामाजिक संगठनों के सहयोग की आवश्यकता है. आवश्यकता पडऩे पर नेत्रदान व नेत्र प्रत्यारोपण के बीच कड़ी का काम कर सके, न केवल मरणासन्न व्यक्ति के परिवार को उस व्यक्ति के मरणोपरांत नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित कर सके, बल्कि ऐसे व्यक्ति जिन्हें नेत्र प्रत्यारोपण की आवश्यकता है उन्हें भी नेत्रों के उपलब्ध होने की खबर जल्द से जल्द पहुँचाकर ऑपरेशन के लिए भर्ती करने व मानसिक रूप से तैयार होने में मदद कर सके. इसलिए निरंतर प्रचार व जन-जागरण की आवश्यकता है. डॉ. मिश्र ने आगे बताया वर्तमान में हमारे देश में 150 से अधिक नेत्र बैंक हैं.

आईये हम अधिक से अधिक लोगों को नेत्रदान के लिए प्रेरित करें, ताकि दृष्टिहीनों के जीवन में प्रकाश की किरणें जगमगाने लगे. डॉ मिश्र फाउंडेशन इस सम्बंध में जागरूकता अभियान के माध्यम से नेत्रदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहा है लोगों को इस सम्बंध में पम्पलेट वितरित करने,परामर्श देने,तथा नेत्रदान के लिए फार्म भरवाने का कार्य किया जा रहा है.