रायपुर. व्यक्ति का पुरूषार्थ भी सफल तभी होता है जब उसका भाग्य साथ देता है. प्रत्येक व्यक्ति अपना भाग्य (भविष्य) जानने के लिए उत्सुक रहता है. भाग्य व्यक्ति के प्रारब्ध (पिछले जन्म के कर्मफल) को दर्शाता है. जन्मकुंडली के नवम् भाव को भाग्य स्थान माना गया है. नवम् भाव से भाग्य, पिता, पुण्य, धर्म, तीर्थ यात्रा तथा शुभ कार्यों का विचार किया जाता है. नवम भाव कुंडली का सर्वोच्च त्रिकोण स्थान है. उसे लक्ष्मी का स्थान माना गया है.

‘मानसागरी’ ग्रंथ के अनुसार- ‘‘विहाय सर्वं गणकैर्विचिन्त्यो भाग्यालयः केवलमन्न यलात्.’’

अर्थात् ‘‘एक ज्योतिषाचार्य को दूसरे सब भावों को छोड़कर केवल नवम् भाव का यत्नपूर्वक विचार करना चाहिए, क्योंकि नवम् भाव का नाम भाग्य है. जब नवम भाव अपने स्वामी या शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो मनुष्य भाग्यशाली होता है. नवमेश भी शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो सर्वदा शुभकारी होता है. बृहस्पति नवम भाव का कारक ग्रह है. जब बलवान बृहस्पति नवम भाव में हो, या लग्न, तृतीय अथवा पंचम भाव में स्थित होकर नवम् भाव पर दृष्टिपात करें तो विशेष भाग्यकारक होता है.

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नवम् भाव व नवमेश निर्बल अथवा पीड़ित हो तो जातक भाग्यहीन होता है. नवमेश, नवम भाव स्थित ग्रह व नवम भाव पर दृष्टिपात करने वाले बलवान ग्रह अपने निर्धारित वर्ष में जातक का भाग्योदय करते हैं. भाग्य स्थान व भाग्येश कमजोर और पीड़ित होने पर जीवन में संघर्ष की अधिकता होती है आसानी से भाग्योदय नहीं होता तथा प्रत्येक कार्य की पूर्ति में बाधायें आती हैं. इस प्रकार व्यक्ति का भाग्य ही उसके सुख और समृधि का कारण होता है इसलिए किसी व्यक्ति को कर्म के साथ भाग्य वृद्धि के प्रयास जरुर करने चाहिए.

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भाग्य वृद्धि के लिए विशेष मंत्र

भाग्य वृद्धि के लिए विशेष मंत्र जो गुरुवार को करने चाहिए वह मंत्र है. “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र जाप से भाग्य को प्रबल बनाया जा सकता है. पूजन सामग्रियों में केसरिया चंदन, पीले फूल, पीला वस्त्र, पीले फल, पीले पकवान शामिल करना चाहिए. इसके बाद चंदन धूप जलाकर भगवान विष्णु के विशेष मंत्र का जप करना चाहिए. मंत्र जप के लिए तुलसी या चंदन की माला का उपयोग करें. मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए. इसके बाद आरती करें. प्रत्येक गुरुवार को इस मंत्र के जाप से भाग्य को चमकाया जा सकता है.