पुरुषोत्तम पात्रा, गरियाबंद. लंबे समय के मांग के बाद तीन साल पहले मनरेगा योजना से पहली बार मिट्टी मुरुम सड़क का काम शुरू हुआ, लेकिन मजदूरों को उसकी भी आधी मजदूरी नहीं मिली. नतीजतन इस बार गांव में मौजूद 39 परिवार के 40 से भी ज्यादा व्यस्क मजदूर ओड़िसा व तेलंगाना रोजी-रोटी के लिए पलायन कर गए. इस गांव में अब केवल महिलाएं ही नजर आती हैं.

देवभोग ब्लॉक में नवीन सुकलीभाटा पंचायत के आश्रित ग्राम दाबरीभांटा में 39 परिवार के 200 सदस्यों में 60 पुरुष सहित कुल 130 व्यस्क सदस्य हैं, गांव की मितानिन डुरो बाई नागेश बताती हैं कि चुनाव के बाद पति मंशा राम समेत 40 लोग धान कटाई करने सम्बलपुर व ईंट भठ्ठी में काम करने तेलंगाना पलायन कर गए हैं. वहीं गांव की महिलाओं ने बताया कि तीन साल पहले मनरेगा योजना के तहत पहली बार मिट्टी सड़क बनाने का काम आया, जिसमे गांव के पूरे लोग 12 से 15 दिन की मजदूरी किया, लेकिन आधी मजदूरी मिली, शेष मजदूरी राशि के लिये रोजगार सहायक लछिधर व सरपंच दया बीसी से कई बार गुहार लगाई, पर अब तक राशि नहीं मिली है.

जब पैसा ही नहीं मिलता तो क्यों करें काम की मांग

गांव में रहने वाले पूरे 39 परिवार बीपीएल की श्रेणी में आते हैं, इनमें से 7 परिवार के पास राशन कार्ड नहीं है. किसी को भी मोबाइल योजना का लाभ नहीं मिला. 11 परिवार को भर उज्ज्वला गैस योजना का लाभ मिला है. केवल 9 परिवार के पास ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा का कार्ड है. महिलाओं ने बताया कि साल भर पहले 39 शौचालय का निर्माण हुआ है, इसकी भी मजदूरी राशि अब तक नहीं दी गई, इसलिए इस बार किसी ने भी मनरेगा काम की मांग नहीं की है.  उन्होंने बताया कि बरसात तक घर-परिवार चलाने लायक कमाई करने पुरुष पलायन किए हैं. मामले में जनपद सीईओ मोहनीश देवांगन ने कहा कि भुगतान जनपद स्तर से हो चुका है, किस वजह से राशि मजदूरों के खाते में नहीं पहुची है, पता करता हूं. पलायन की जनकारी निरंक है इसलिए इसके बारे में कुछ नहीं कह पाऊंगा.

बाबा आदम जमाने की पगडंडी पर चलने को मजबूर

गांव में ज्यादातर मकान कच्चे मिट्टी के है. गांव में विकास के सारे दावे बौने नजर आते हैंं. पंचायत मुख्यालय पहुंचने के लिए पूर्वजों ने जो पगडण्डी बनाई थी, वहीं आज भी मौजूद है. बरही ग्राम में पक्की सड़क तक पहुंचने 6 किमी की पगडण्डी के बीच तीन किमी का हिस्सा वन विभाग का है, इसलिए अब तक सड़क नहीं बन सकी है. कच्ची सड़क पर किसी तरह से बाकी दिनों में 4 पहिया की आवाजाही तो हो जाती है, लेकिन बारिश के दिन में दोपहियों की भी आवाजाही नहीं हो पाती. ऐसे में मरीज हो या प्रसूता हर किसी को खाट का कांवर बना कर ढोना पड़ जाता है. इस मामले में प्रभारी परिक्षेत्र अधिकारी एम कन्नौजे ने कहा कि पंचायत मांग पत्र देती है, और पेड़ न काटना पड़े. इस स्थिति में डब्ल्यूबीएम सड़क बनाकर विभाग दे सकती है, जिससे ग्रामीणों की आवाजाही सुगम हो सके.

महिलाओं ने घेर लिया सरपंच को

मीडिया की जाने की भनक लगते ही गांव में सरपंच दया बीसी पहुंच गए. सरपंच राशि मजदूरों के खाते में नहीं आने को बैंकिंग त्रुटि बताया है, वहीं पलायन के कारण को झूठा बताते हुए काम की कोई कमी नहीं बोलने लगे तो महिलाओं ने सरपंच को घेर लिया. बैंक के पासबुक दिखाते हुए मजदूरी की मांग करने लगे. निरुत्तर होकर सरपंच को वापस लौटना पड़ा.