माल्टा और नींबू के मूल्य को लेकर पूर्व सीएम रावत ने धामी सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘कभी-कभी प्रबुद्ध समाज को उकसाने के लिए कुछ ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं, जो आपको स्वयं भी आश्चर्यजनक लग सकते हैं. मैंने भी एक ऐसा ही कदम उठाया. छोटे-छोटे माल्टे और नींबू की एक छोटी कंडी अपने प्रबुद्ध समाज के कुछ मित्रों के पास भेजी. जैसा कि मैं अपेक्षा कर रहा था, मेरे एक मित्र ने कहा कि माल्टे बहुत छोटे थे. मैंने कहा—हाँ, मैंने आपके विचारों को उखेलने के लिए जान-बूझकर छोटे माल्टे और नींबू भेजे.’
रावत ने लिखा कि ‘माल्टा और नींबू को समुचित सपोर्ट प्राइस नहीं मिल पा रहा है. उसके अभाव में ग्रेड-बी और ग्रेड-सी का माल्टा और नींबू मार्केट में स्थान नहीं बना पा रहे हैं. यदि मार्केट में प्राइस मिल भी रहा है, तो वह औने-पौने दाम पर मिल रहा है. इसका परिणाम यह हो रहा है कि नींबू और माल्टे, दोनों की—हर फसल के बाद जाड़ों में जड़ें खोदनी पड़ती हैं, उन्हें धूप मिले उसका प्रबंध करना पड़ता है और उसके बाद उन पर कंपोस्ट खाद डालकर मिट्टी से दबाया जाता है. जाड़ों में यदि बारिश कम होती है, तो थोड़ा पानी भी देना पड़ता है ताकि उनकी टहनियों में शक्ति बनी रहे. वही शक्ति फ्लावरिंग के वक्त काम आती है. इससे फल भी ज्यादा आते हैं, फलों का साइज भी अच्छा होता है और स्वाद भी बेहतर होता है.’
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रावत ने आगे लिखा कि ‘माल्टा, नींबू और पहाड़ी गलगल दुर्लभ प्रजाति के फल हैं. इनमें फलों में भी और उनके छिलकों में भी अद्भुत ताकत है. यहां तक कि इनकी पत्तियों और छिलकों से बनने वाली कंपोस्ट खाद का भी बड़ा उपयोग है. ऐसे पर्यावरण-मित्र फल, जो हमारे उत्तराखंड की स्वाभाविक हरियाली का हिस्सा हैं, धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं. क्योंकि नई पौध तो लग ही नहीं रही है, और जो पुरानी पौध है, उसे भी अब किसान केवल “जितना फल आ जाए” की भावना से देख रहा है. इसलिए हमारा जो कैंपेन है, वह स्पष्ट है—7 और 10 प्रति किलो माल्टा-नींबू के सपोर्ट प्राइस में दम नहीं है, 20 और 25 रुपये प्रति किलो से कम नहीं.’
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