रायपुर. नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली. इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली. इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है. जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता.

माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है. संतान के प्रांरभिक शिक्षा और उनके चरित्र निर्माण हेतु माता के इस रूप की पूजा करनी चाहिए, जिससे बच्चे में तप त्याग और सदाचार तथा संयम का भाव बनेगा और उसका चरित्र अनुशासित होगा और उसके गुणों में आज्ञापालन का भाव होगा, जिससे उसके जीवन में सदैव ही यश, समृद्धि तथा सुख होगा.मांमाँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है. संतान के प्रांरभिक शिक्षा और उनके चरित्र निर्माण हेतु माता के इस रूप की पूजा करनी चाहिए, जिससे बच्चे में तप त्याग और सदाचार तथा संयम का भाव बनेगा और उसका चरित्र अनुशासित होगा और उसके गुणों में आज्ञापालन का भाव होगा, जिससे उसके जीवन में सदैव ही यश, समृद्धि तथा सुख होगा.

ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा विधि –

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करते हुए नीचे लिखा मंत्र बोलें  

या देवी सर्वभू‍तेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है. या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ.

इसके बाद देवी को पंचामृत स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें. देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं. इसके अलावा कमल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं और इन मंत्रों से प्रार्थना करें.

इसके बाद देवी मां को प्रसाद चढ़ाएं और आचमन करवाएं. प्रसाद के बाद पान सुपारी भेंट करें और प्रदक्षिणा करें, प्रदक्षिणा के बाद घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें. इन सबके बाद क्षमा प्रार्थना करें और प्रसाद बांट दें.

इस प्रकार माता के द्वितीय रूप ब्रह्मचारिणी की पूजा से अपने संतान में तप की भावना तथा अनुशासन और आज्ञापालन लाया जा सकता है.