पवन राय, मंडला। मध्य प्रदेश के आदिवासी जिला मंडला के गांवों में रहने वाले लोग अपना जीवन निर्वाह के लिए प्राकृतिक संपदाओं पर निर्भर रहते हैं। होली खत्म होते ही आग उगलते सूरज की गर्मी के बीच जंगल और गांव महुआ की मादकता से गुलजार हैं। यह करिश्माई पेड़ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक अहम योगदान देता है। यही वजह है कि महुआ बुवाई में गांव खाली हो जाता है। आइए जानते है किस तरह से ग्रामीणों के जीवन में महत्वपूर्ण है।
पेड़ों के नीचे टपक रहे फूलों को एकत्र करने के लिए सुबह पांच बजे से ही आदिवासियों की टोलियां निकल जाती है। गांव मे खेत में लगे महुआ पर खेत मालिक का अधिकार होता है, लेकिन वनों के अंदर लोगों में विवाद न हो इसके लिए वन समितियां पेड़ों का निर्धारण करती है। परिवार का हर सदस्य बारी बारी से महुआ बीनने में अपनी भूमिका निभाता है। आमतौर पर मार्च माह में होली त्योहार निकलने के बाद से अप्रैल अंत तक यह कार्य चलता है।
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35 रुपये समर्थन मूल्य
ग्रामीणों का कहना है कि अधिकांश घरों में कम से कम एक से दो क्विंटल महुआ एकत्र कर लेते है। इस बार सरकार ने महुआ का समर्थन मूल्य 35 रुपए किलो कर दिया है। हालांकि वन विभाग सीधे महुआ नहीं खरीदता है। वनों के अंदर हुए महुआ को वन समितियां खरीदती है, अधिकांश महुआ व्यापारी ही खरीदते हैं।
समिति बनाकर रोजगार देने की कोशिश
मंडला वन विभाग ने दो वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री बंधन योजना के अंतर्गत महिलाओं की समिति बनाकर रोजगार देने की कोशिश की है। महिलाओं की समिति महुआ के लड्डू और बिस्कुट बनाती है, जो प्रदेश में होने वाले प्रत्येक शासकीय आयोजन में स्टाल लगाकर लड्डू और बिस्कुट बेचती है।

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शासकीय मेले में ही मिलते हैं प्रोडक्ट
पिछले साल मंडला की इस समिति ने ढेड़ क्विंटल बिस्कुट का उत्पादन कर बेचा था। चूंकि महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे ये प्रोडक्ट शासकीय मेले में ही मिलते हैं। इसलिए बेहद कम लोगों को इसकी जानकारी है। इन उत्पादों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि गांव के लोगों को महुआ से बनने वाले उत्पाद की तरफ आकर्षित किया जा सके।

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