पवन राय, मंडला। जीवन में मुश्किलें आएं तो कई लोग टूट जाते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के मंडला जिले के रहने वाले लक्ष्मी नारायण उन लोगों के लिए मिसाल हैं, जिन्होंने दिव्यांगता को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। लक्ष्मी ने अपनी कला को ही जीवन का सहारा बना लिया।
बचपन में हुए एक बड़े हादसे ने मंडला के लक्ष्मी नारायण का एक पैर छीन लिया, लेकिन हिम्मत और कला के सहारे उन्होंने हार मानने के बजाय ज़िंदगी को नई राह दी। लक्ष्मी नारायण मूर्ति निर्माण कला में पारंगत हैं और उनकी बनाई प्रतिमाएं आज मंडला ही नहीं, आसपास के जिलों में भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। पिता से सीखी कला को उन्होंने अपनी पहचान बना लिया। एक पैर से विकलांग होने के बावजूद लक्ष्मी नारायण अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं।
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लक्ष्मी की धर्मपत्नी और बेटा भी इस कला में उनका सहयोग करते हैं। लक्ष्मी नारायण कहते है “शरीर से भले मैं कमजोर हूं, लेकिन हौसले ने कभी मुझे गिरने नहीं दिया। कला ने मुझे जीने का सहारा दिया।” लक्ष्मी नारायण की यह कहानी न केवल मंडला बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा है। यह संदेश है कि अगर हिम्मत और जज्बा हो तो कोई भी कठिनाई इंसान को रोक नहीं सकती।
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