हेमंत शर्मा, इंदौर। मध्य प्रदेश में दीपावली के पर्व के दौरान इंदौर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाया है। मंदसौर के बहुचर्चित किसान आंदोलन के दौरान हुई गोलीकांड की जांच रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने के निर्देश देने के उद्देश्य से दायर की गई जनहित याचिका को उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने खारिज कर दिया है। यह याचिका पूर्व कांग्रेस विधायक पारस सकलेचा द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने मांग की थी कि सरकार द्वारा गठित न्यायमूर्ति जैन आयोग की रिपोर्ट को विधानसभा में सार्वजनिक किया जाए।
क्या है मामला
यह मामला मंदसौर में 2017 के दौरान हुए किसान आंदोलन से जुड़ा है, जब पुलिस फायरिंग में छह किसानों की मौत हो गई थी। इस घटना ने पूरे प्रदेश में हलचल मचा दी थी और इसे लेकर सरकार के खिलाफ कई आरोप भी लगे थे। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने न्यायमूर्ति जैन की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया था, जो इस मामले की जांच कर रहा था। पारस सकलेचा ने याचिका दायर कर यह आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं कर रही है और उन्होंने इसे विधानसभा में पेश किए जाने की मांग की थी।
उच्च न्यायालय का निर्णय
इस याचिका पर सुनवाई के दौरान इंदौर उच्च न्यायालय की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति बीके द्विवेदी शामिल थे, ने यह निर्णय सुनाया। अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद सोनी ने सरकार का पक्ष रखते हुए दलील दी कि यह रिपोर्ट विधानसभा में प्रस्तुत करना अनिवार्य नहीं है और इसे सरकार के विशेषाधिकार में आता है। अदालत ने इस तर्क से सहमति जताते हुए याचिका को खारिज कर दिया। इस फैसले से सरकार को राहत मिली है, लेकिन विपक्ष ने इस पर नाराजगी जाहिर की है। कांग्रेस और किसान संगठनों ने सरकार पर आरोप लगाए कि वह इस रिपोर्ट को दबाने का प्रयास कर रही है। विपक्ष का कहना है कि यह रिपोर्ट सरकार की भूमिका और जवाबदेही पर सवाल उठाती है, इसलिए इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए था।
राजनीतिक मायनों में अहम फैसला
इस फैसले का राजनीतिक मायने भी हैं, क्योंकि यह दिवाली के ठीक पहले आया है, और सरकार के पक्ष में एक महत्वपूर्ण जीत मानी जा रही है। विपक्षी दल इस मुद्दे को आगामी चुनावों में भुनाने की कोशिश कर सकते हैं, जबकि सरकार ने इसे कानून और न्याय की जीत बताया है। मंदसौर किसान गोलीकांड को लेकर उठी यह जनहित याचिका और इसे खारिज करने का फैसला राज्य की राजनीति में एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।
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