अमीरगढ़. जीवन का सबसे बड़ा सत्य है, मृत्यु जिसे चाहकर भी कोई टाल नहीं सकता है. जो मृत्युलोक में आया है उसे एक दिन अपने शरीर को छोड़कर जाना ही है. शरीर में मौजूद उर्जा जिसे आत्मा कहते हैं वह समाप्त नहीं होती बस रूपान्तरित होती रहती है. मौत हो जाने के कुछ समय तक आत्मा को अजब-गजब अनुभव से गुजरना होता है जो आत्मा के भी दुखद और कष्टकारी होती है. ये तो रही जीवन से मृत्यु तक की बात, पर जब एक व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उस व्यक्ति से जुड़े हर इंसान सदमे या कष्ट में हो जाता है.

दुनिया में सिर्फ एक मां है, जिसको लिए अपनी संतान को खोने का कष्ट असहनीय हो जाता है, या युं कहा जाए कि एक मां अपने संतान के सदमे से उबर नहीं पाती. मनुष्य का शरीर भले ही माटी में मिल जाए पर मां की ममता अपने संतान के लिए कभी कम नहीं होती. ऐसा ही एक कहानी गुजरात से सामने आई है. उत्तर गुजरात के जूनीरोह गांव की मंगूबेन चौहाण के बेटे का चार महीने पहले एक हादसे में निधन हो गया था. निधन के बाद गांव के पास ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

समय से पहले बेटे के मौत की पीड़ा के सदमे से मंगूबेन चौहाण अब तक उबर नहीं पाई हैं. आलम यह है कि मंगूबेन को जब भी बेटे की याद आती है, तो वह अंतिम संस्कार वाली जगह पर चली जाती है और वहां पहुंचकर बेटे की चिता की राख पर लेट जाती हैं. मंगूबेन जब कभी भी घर पर नजर नहीं आती तो परिवार वाले मोक्षधाम जाकर देखते हैं. वहां उनको मंगूबेन मिल जाती है. जिसके बाद परिजन मंगूबेन को मोक्षधाम से वापस ले आते हैं. यह सिलसिला अब भी लगातार जारी है.