लोकसभा में बुधवार को तीन अहम विधेयक पेश किए गए, जिनमें यह प्रावधान किया गया है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में गिरफ्तार होकर लगातार 30 दिन तक हिरासत में रहते हैं तो 31वें दिन उन्हें अपने पद से हटना होगा. सरकार का कहना है कि यह संशोधन इसलिए लाया जा रहा है ताकि भविष्य में कोई भी जनप्रतिनिधि जेल में रहकर पद पर न बना रहे. माना जा रहा है कि हाल ही में कथित शराब घोटाले में जेल गए दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल का मामला इसकी पृष्ठभूमि है.
इस बीच दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने इस विधेयक को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने X पर लिखा कि कानून में यह व्यवस्था भी होनी चाहिए कि यदि कोई मंत्री या मुख्यमंत्री झूठे आरोपों में जेल जाता है और बाद में अदालत से बरी हो जाता है, तो उसे जेल भेजने वाले अधिकारी, एजेंसी प्रमुख और उस समय की सरकार के मुखिया-चाहे प्रधानमंत्री हों या मुख्यमंत्री – को भी उतनी ही सजा दी जाए जितनी सजा उस झूठे आरोप में तय थी.
सिसोदिया ने आगे कहा “सिर्फ मंत्रियों या नेताओं के लिए ही क्यों? अगर कोई आम आदमी भी झूठे केस में जेल भेजा जाता है, और बाद में निर्दोष साबित होता है, तो उसे जेल भेजने वालों को भी सजा मिलनी चाहिए. लोकतंत्र में सत्ता के पास ताकत होना जरूरी है, लेकिन अगर इस ताकत का दुरुपयोग करने वालों को सजा नहीं मिलेगी तो यह निरंकुश ताकत सबको रावण बना देगी.”
क्या है नया विधेयक?
गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के विरोध के बीच लोकसभा में ‘संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025’, ‘संघ राज्य क्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक, 2025’ और ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025’ पेश किए. इन विधेयकों में प्रस्ताव है कि यदि प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री या मुख्यमंत्री ऐसे अपराध में गिरफ्तार होते हैं जिनमें कम से कम पांच साल की सजा का प्रावधान है और उन्हें लगातार 30 दिन हिरासत में रखा जाता है, तो वे स्वतः पद से हट जाएंगे.
सरकार बनाम विपक्ष
सरकार का दावा है कि यह कदम लोकतांत्रिक संस्थाओं की पारदर्शिता और साख बनाए रखने के लिए जरूरी है. वहीं विपक्ष का कहना है कि इस कानून का राजनीतिक दुरुपयोग कर विरोधी नेताओं को निशाना बनाया जा सकता है.
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