रायपुर- छत्तीसगढ़ बीजेपी की तीसरी बार कमान संभालने के ठीक बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय ने कहा है कि साल 2023 के विधानसभा चुनाव में राज्य की सत्ता में बीजेपी फिर से लौटेगी. अध्यक्ष की ताजपोशी के बाद उनका यह बयान स्वाभाविक था, लेकिन बीजेपी के भीतर नजर आ रही तस्वीरें यह सवाल खड़ा करती हैं कि साय की राजनीतिक लड़ाई सत्ता में काबिज कांग्रेस सरकार के खिलाफ होगी या फिर इससे ज्यादा जोरआजमाइश संगठन के भीतर उपजे उस बगावत को दूर करने में होगी, जो उनके अध्यक्ष बनाए जाने के साथ खड़ी हो गई है.
संगठन के उच्च पदस्थ सूत्र कहते हैं कि विष्णुदेव साय के रूप में छत्तीसगढ़ बीजेपी को नया अध्यक्ष जरूर मिला है, लेकिन सरल, सहज चेहरे के सिर पर कांटों भरा ताज पहना दिया गया. दरअसल इस चर्चा के पीछे की वाजिब वजह हैं. साय को अध्यक्ष बनाए जाने से संगठन का एक बड़ा और प्रभावशाली धड़ा खासा नाराज है. नाराजगी का आलम यह रहा कि जिस वक्त विष्णुदेव साय की बीजेपी कार्यालय में ताजपोशी चल रही थी, उस वक्त अजय चंद्राकर, रामविचार नेताम सरीखे दिग्गज नेता नदारद दिखे. बृजमोहन अग्रवाल महज खानापूर्ति के लिए पहुंचे, लेकिन जल्दी विदाई ले ली. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ बीजेपी सत्ता के खिलाफ लड़ाई लड़ेगी या फिर अपनों के साथ लड़ने में वक्त जाया करेगी.
हालांकि विष्णुदेव साय पार्टी के भीतर किसी तरह की नाराजगी या गुटबाजी को सिरे से खारिज कर रहे हैं. अध्यक्ष पद संभालने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में इससे जुड़ा सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि कोरोना की वजह से कई नेता नहीं आ सके, लेकिन उनकी फोन पर सबसे बात हो चुकी है. सबने उन्हें अपना समर्थन दिया है, लेकिन साय यह भी कह गए कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने जब निर्णय कर दिया है, तो किंतु-परंतु की कोई गुंजाइश नहीं. यानी अपनी सरल, सहज छवि के तौर पर पहचाने जाने वाले साय ने अपने बयान से यह संकेत भी दे दिए हैं कि विरोध की कोई गुंजाइश नहीं होगी.
विष्णुदेव साय को प्रदेश अध्यक्ष की कमान तीसरी दफे दी गई है. विरोध की एक बड़ी वजह यह भी रही है. संगठन में इस नियुक्ति का विरोध करने वाला धड़ा यह कहता है कि राज्य में इस वक्त आक्रामक नेतृत्व की दरकार थी. तेजतर्रार व्यक्ति को संगठन की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी, साय विनम्र छवि के नेता है.
संगठन के एक आला दर्जे के नेता चर्चा में कहते हैं कि- ‘ मौजूदा नेतृत्व में भूपेश सरकार के खिलाफ लड़ने का माद्दा दिखाई नहीं देता. बीजेपी क्या इस नेतृत्व के साथ सरकार से लड़ पाएगी? कार्यकर्ता उत्साहित नहीं दिख रहे. ऐसा लगता है कि आदिवासी चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाना था, तो विष्णुदेव साय जैसे विनम्र व्यक्ति को थोप दिया गया.’
संगठन के एक अन्य दिग्गज नेता कहते हैं कि- विष्णुदेव साय की छवि पर कोई संदेह नहीं है, संगठन के प्रति उनकी निष्ठा, समर्पण से सभी वाकिफ हैं, लेकिन एक नेतृत्वकर्ता के रूप में उनकी भूमिका संदेह के दायरे में खड़ी होती रहेगी. क्योंकि उनका हर निर्णय राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के जरिए होता है.
छत्तीसगढ़ बीजेपी ने नए प्रदेश अध्यक्ष का इंतजार लंबे समय तक किया है. सबसे पहले दुर्ग सांसद विजय बघेल के नाम पर मुहर लगने की खबरें सामने आई. सोशल मीडिया पर बधाईयों का दौर भी चला. यह दलील सुनाई पड़ी कि ओबीसी के साथ-साथ वह आक्रामक नेता हैं, मुख्यमंत्री के करीबी रिश्तेदार हैं और दोनों के बीच राजनीतिक कटुता है. राज्य में ओबीसी वर्ग की सियासत के बीच यह बेहतर विकल्प होगा, लेकिन तब दुर्ग में ही उनके नाम का विरोध दर्ज हो गया. विरोध करने वालों में राजधानी तक के शीर्षस्थ नेताओं के नाम शामिल थे.
चर्चा वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम के नाम पर भी होती रही. दिल्ली में रहने वाले केंद्रीय संगठन के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से यह जानकारी भी सामने आई कि उनके नाम पर आलाकमान ने मंजूरी दे दी है. उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी जा सकती है, लेकिन सुनाई पड़ता है कि नेताम के नाम पर पूर्व मुख्यमंत्री समेत कईयों ने अपना वीटो लगा दिया.
अंतत विष्णुदेव साय का नाम ही विकल्प के रूप में बचा. पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह का करीबी होना उनके लिए फायदेमंद रहा. उनकी मदद और पूर्व केंद्रीय मंत्री के रूप में काम करते हुए आलाकमान से नजदीकी साय के काम आई.
हालांकि विष्णुदेव साय ने अध्यक्ष बनाए जाने के बाद मीडिया से हुई बातचीत में यह बयान दिया था कि बीजेपी पार्टी नहीं एक परिवार है. यहां सब टीम भावना के साथ काम करते हैं. कोई किसी का आदमी नहीं है. हर एक कार्यकर्ता बीजेपी की पूंजी है. पार्टी में किसी तरह की गुटबाजी नहीं है. किन्हीं मुद्दों को लेकर मनभेद हो सकता है, लेकिन मतभेद कतई नहीं है.
बतौर अध्यक्ष ताजपोशी होने के बाद भी साय ने प्रेस कांफ्रेंस में इन बातों को दोहराया. उन्होंने कहा कि संगठन में हर फैसले मिल बैठकर लिए जाते हैं. अनुभवी नेताओं से रायशुमारी कर निर्णय लिया जाता है. आक्रामक अंदाज में काम करने की अपनी प्रारंभिक रणनीति भी उन्होंने मीडिया से साझा की.