रायपुर . लोगों के बीच पानी से संबंधित चुनौतियों को लेकर जागरूकता बढ़े, इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने इस दिवस की घोषणा की थी.पानी के बिना जीवन पूरी तरह अधूरा है, इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. पानी प्राण तत्व है, अगर पानी नहीं रहेगा तो सम्पूर्ण सृष्टि पर कोहराम मच जाएगा.पानी हर प्राणी के लिए जरूरी तत्व है.इसलिए हम सभी का पहला कर्तव्य है की पानी को बेवजह बर्बाद न करें. ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते. अगर सही ढंग से पानी का सरंक्षण किया जाए और जितना हो सके पानी को बर्बाद करने से रोका जाए तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान हो जाएगा. लेकिन इसके लिए जरूरत है जागरुकता की. एक ऐसी जागरुकता की जिसमें छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बड़े बूढ़े भी पानी को बचाना अपना धर्म समझें.

 

कैसे करें जल-संरक्षण ?

जल हमें प्रकृति ने स्वाभाविक उपहार के रूप में दिया है, जो हमारे जीवन तथा विकास के लिये बेहद जरूरी है. प्रकृति ने ‘वर्षाजल’ के रूप में हमारे द्वारा खर्च किए गए जल की प्रति-पूर्ति का स्वाभाविक प्रबन्ध कर रखा है. खारे समुद्र से भाप बनकर उड़ने वाला जल वर्षा के रूप में ‘शुद्ध’ होकर हमें मिलता है. जल विज्ञानियों ने वर्षाजल के संचयन की विधि बताई है, जिससे नगरों, गाँवों और विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में जल का संरक्षण करके हम देश और समाज का बहुत बड़ा हित कर सकते हैं.

निश्चय ही वर्षा प्रकृति द्वारा मानव को दिया जल का ‘प्रथम’ स्रोत है, जिससे नदियाँ, तालाब आदि जल ग्रहण करते हैं, वर्षा के बाद द्वितीयक स्रोत भूजल है, जिसकी पूर्ति भी वर्षाजल से होती है.हमें जल विज्ञानियों के बताए अनुसार ‘वर्षाजल संचयन’ करके उसे मनुष्य और पशुओं के लिये उपयोग करने की दिशा में अब तेजी से कदम बढ़ाना जरूरी हो गया है. वर्षाजल संचयन में ही ‘भूजल’ की प्रतिपूर्ति अर्थात ‘रिचार्ज’ की प्रक्रिया भी जुड़ी हुई है. वर्षाजल को व्यर्थ गँवा कर हम प्रतिवर्ष राष्ट्र की अपूर्णीय क्षति करते हैं। इसलिये ‘वर्षाजल संचयन’ और ‘भूमिगत जल’ की पूर्ति यानि ‘रिचार्ज’ की आवश्यकता पर ही हमें अब पूरा ध्यान देना होगा.

‘जल-संरक्षण’ के कुछ बेहद सरल और कारगर उपाय

राष्ट्रीय विकास में जल की महत्ता को देखते हुए अब हमें ‘जल-संरक्षण’ को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर पूरे देश में कारगर जन-जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है. ‘जल-संरक्षण’ के कुछ परम्परागत उपाय तो बेहद सरल और कारगर रहे हैं जिन्हें हम, जाने क्यों, विकास और फैशन की अंधी दौड़ में भूल बैठे हैं.

कुछ उपाय

  1. सबको जागरूक नागरिक की तरह ‘जल-संरक्षण’ का अभियान चलाते हुए बच्चों और महिलाओं में जागृति लानी होगी.स्नान करते समय ‘बाल्टी’ में जल लेकर ‘शॉवर’ या ‘टब’ में स्नान की तुलना में बहुत जल बचाया जा सकता है। पुरूष वर्ग दाढ़ी बनाते समय यदि टोंटी बन्द रखे तो बहुत जल बच सकता है. रसोई में जल की बाल्टी या टब में अगर बर्तन साफ करें, तो जल की बहुत बड़ी हानि रोकी जा सकती है.2. टाॅयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रख देने से हर बार ‘एक लीटर जल’ बचाने का कारगर उपाय उत्तराखण्ड जल संस्थान ने बताया है. इस विधि का तेजी से प्रचार-प्रसार करके, पूरे देश में लागू करके, जल बचाया जा सकता है.3. पहले गांवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप में मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था. साथ ही, अनुपयोगी जल भी तालाब में जाता था, जिसे मछलियाँ और मेंढक आदि साफ करते रहते थे और तालाबों का जल पूरे गांव के पीने, नहाने और पशुओं आदि के काम में आता था. दुर्भाग्य यह कि स्वार्थी मनुष्य ने तालाबों को पाट कर घर बना लिये और जल की आपूर्ति खुद ही बन्द कर बैठा है. जरूरी है कि गाँवों, कस्बों और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षाजल का संरक्षण किया जाए.

    4. नगरों और महानगरों में घरों की नालियों के पानी को गड्ढे बना कर एकत्र किया जाए और उसे पेड़-पौधों की सिंचाई के काम में लिया जाए, तो साफ पेयजल की बचत अवश्य होगी.

    5. अगर प्रत्येक घर की छत पर ‘वर्षाजल’ का भण्डार करने के लिये एक या दो टंकी बनाई जाए और इन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढक दिया जाए तो हर घर में ‘जल-संरक्षण’ किया जा सकेगा.

    6. घरों, मुहल्लों और सार्वजनिक पार्कों, स्कूलों अस्पतालों, दुकानों, मन्दिरों आदि में लगी नल की टोंटियाँ खुली या टूटी रहती हैं, तो अनजाने ही प्रतिदिन हजारों लीटर जल बेकार हो जाता है.इस बर्बादी को रोकने के लिये नगरपालिका एक्ट में टोंटियों की चोरी को दण्डात्मक अपराध बनाकर, जागरूकता भी बढ़ानी होगी.

    7. विज्ञान की मदद से आज समुद्र के खारे जल को पीने योग्य बनाया जा रहा है, गुजरात के द्वारिका आदि नगरों में प्रत्येक घर में ‘पेयजल’ के साथ-साथ घरेलू कार्यों के लिये ‘खारेजल’ का प्रयोग करके शुद्ध जल का संरक्षण किया जा रहा है, इसे बढ़ाया जाए.

    8. जंगलों का कटान होने से दोहरा नुकसान हो रहा है. पहला यह कि वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती और दूसरे भूमिगत जल सूखता जा रहा है. बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण के कारण जंगल और वृक्षों के अंधाधुंध कटान से भूमि की नमी लगातार कम होती जा रही है, इसलिये वृक्षारोपण लगातार किया जाना जरूरी है.