अजमेर (राजस्थान)। अजमेर जिले के लावेरा गांव में मंगलवार को 75 पुलिसकर्मियों की निगरानी में घोड़ी पर सवार दूल्हे की 8 किलोमीटर तक बारात चली. दलित समुदाय से जुड़े दूल्हे के पिता ने यह व्यवस्था 2005 में अपनी बहन की शादी के दौरान बड़े समुदाय द्वारा की गई बेइज्जती की वजह से कराई थी. इससे साबित होता है कि घटना के 20 साल बीतने के बाद भी राजस्थान में व्यवस्था में नहीं बदली है.

श्रीनगर गांव के दूल्हे के पिता नारायण रैगर ने अपने बेटे विजय उर्फ ​​गोपाल की शादी को सही रीति-रिवाजों के साथ और शांतिपूर्वक संपन्न कराने के लिए प्रशासनिक हस्तक्षेप की मांग की थी. यहां तक ​​कि दूल्हे अरुणा के पिता नारायण खोरवाल, जो कि लावेरा गांव के अनुसूचित जाति के रैगर हैं, ने भी किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए भेदभाव के खिलाफ लड़ने वाले कार्यकर्ताओं से संपर्क किया था.

राजस्थान के गांव में दूल्हे के साथ घोड़ी और पुलिस की टुकड़ी ‘हैप्पीली एवर आफ्टर’ पल के लिए साथ थी. बिंदोली (जुलूस) समारोह के अनुसार, दूल्हा घोड़ी पर सवार होता है, जो कथित तौर पर उच्च जाति के लोगों को अस्वीकार्य है.

मानव विकास अधिकार केंद्र संस्थान के कार्यकर्ता रमेश चंद्र बंसल ने भी सामाजिक तनाव और समस्या पैदा करने वालों के हस्तक्षेप की संभावना के मद्देनजर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से दलित समुदाय के मानवाधिकारों की रक्षा करने की अपील की थी.

अस्थायी पुलिस छावनी में बदला गांव

रैगर के अनुरोध और बंसल की अपील के आधार पर एसपी वंदिता राणा और एएसपी डॉ. दीपक कुमार समेत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एक प्लाटून पुलिस बल के साथ लवेरा के लिए रवाना हुए. नसीराबाद के पुलिस थाने के जवान भी साथ आए. किसी भी तरह की गड़बड़ी को रोकने के लिए गांव को अस्थायी रूप से पुलिस छावनी में बदल दिया गया. एएसपी कुमार ने कहा, “गांव पुलिस की सुरक्षा में था और बारात शांतिपूर्ण तरीके से निकली. यहां तक ​​कि विभिन्न समुदायों के लोग भी मौजूद थे और बिंदोली के साक्षी बने.”

वर्ष 2005 में नारायण को भी इसी तरह की धमकियों का सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने अपनी बहन सुनीता की शादी करवाई थी. उनके दूल्हे के साथ भी पुलिस थी. नारायण ने बताया कि चूंकि उस समय स्थिति एससी समुदाय द्वारा इस तरह की रस्मों के लिए अनुकूल नहीं थी, इसलिए घोड़ी का मालिक ऊंची जाति के लोगों की फटकार के डर से बारात शुरू होने से पहले ही भाग गया. उन्होंने बताया कि दूल्हे को बाद में जीप में आना पड़ा.

जोखिम नहीं लेना चाहता था परिवार

कार्यकर्ता बंसल ने बताया कि इस शादी के लिए उन्होंने दूल्हे और उसके माता-पिता से खास तौर पर कहा था कि वे बिना किसी डर के डीजे और पटाखे लेकर आएं. बंसल ने कहा, “लेकिन परिवार जोखिम नहीं लेना चाहता था. दुख की बात है कि आजादी के इतने साल बाद भी अनुसूचित जाति के लोगों को पाबंदियों का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें प्रशासन की मदद लेनी पड़ रही है.”

गुर्जर समुदाय ने शादी में निभाई बड़ी भूमिका

यह जानना दिलचस्प था कि लवेरा गांव के गुर्जर समुदाय ने शादी में बड़ी भूमिका निभाई. शादी के दिन, गुर्जर समुदाय के पंच पटेलों और ग्रामीणों ने सामाजिक सौहार्द की मिसाल कायम करते हुए दूल्हे का स्वागत किया. उन्होंने बारात का स्वागत किया और दूल्हे के दुल्हन के घर पहुंचने तक बिंदोली में भी शामिल हुए. यहां तक ​​कि विदाई भी बहुत सम्मान और प्यार से की गई.