रायपुर। प्रकृति, प्रेम, मनोभाव व दर्शन को समाहित करते हुए मारीषा समा पिंगुआ के 41 कविताओं के संग्रह ‘पर्ल्ड रेनड्राप्स’ का विमोचन सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी बीकेएस रे ने किया. राजधानी के एक निजी होटल में रविवार को आयोजित कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में पूर्व डीजीपी एएन उपाध्याय, पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी, अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, एडीजी प्रदीप गुप्ता मौजूद थे.

जिस उम्र में कई युवा शब्दों के अर्थ समझने में लगे होते हैं, उस उम्र में रायपुर की मारीषा समा पिंगुआ ने मर्म से भरी कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं. हर कविता के पीछे गहरे भाव छिपे हैं, लेकिन शब्दों में पिरोने की खासियत ऐसी कि पाठक खुद ही अपनी समझ के आधार पर उन कविताओं का अर्थ निकाल सके. 23 वर्षीया मारीषा समा पिंगुआ वरिष्ठ आईएएस एवं वन विभाग के प्रमुख सचिव मनोज कुमार पिंगुआ की बेटी हैं.

छोटी उम्र में ही साहित्य की ओर रुझान पर मारीषा ने बताया कि पहली बार कक्षा छठवीं में पढ़ने के दौरान मन में आने वाले विचारों को उन्होंने नोटपैड में लिखना शुरू किया, फिर उम्र बढ़ने के साथ कोर्स की किताबों व टीवी सीरियल के कुछ पात्रों से प्रभावित होकर उन पर कुछ कविताएं लिखीं. समय से साथ प्रकृति, मानवीयता, आध्यात्मिकता, मनोदशा, राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य से लेकर प्रेम व वात्सल्य से जुड़े विषयों पर भी लिखना शुरू कर दिया. यह सारी रचनाएं जीवन अनुभवों पर आधारित हैं.

विमोचन अवसर पर लेखिका के पिता व वरिष्ठ आईएएस मनोज कुमार पिंगुआ ने कहा कि लिखना उनका भी शौक रहा है, लेकिन व्यस्तताओं की वजह से वे इस क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाए. उन्होंने बताया कि कविताओं को लेकर बेटी मारीषा की रुचि का पता था, लेकिन वह किताब लिखने की स्थिति में भी आ जाएगी, यह जानने के बाद वे आश्यर्चचकित थे. उन्होंने मारीषा की रचना को किताब रूप में लाने के लिए अपने मित्रवत प्रो. आनंदमूर्ति मिश्रा, लेखक अमूल्य प्रियदर्शी, ज्ञानेन्द्र सिंह एवं अरुण पांडेय को श्रेय दिया.

कार्यक्रम में अब तक अपनी 44 किताबें और 23 कविता संग्रह को प्रकाशित करा चुके सेवानिवृत्त आईएएस बीकेएस रे ने कहा कि कविता लिखना अंतर्मन के विचारों को लिपिबद्ध करना है, जिसके कई रंग होते हैं. हर कवि का अपना अलग अंदाज होता है, लेकिन कविता लिखना आसान नहीं होता. हर कोई यह काम नहीं कर सकता. ‘पर्ल्ड रेनड्राप्स’ में गहरे प्रभाव छोड़ने वाली रचनाओं के लिए शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने मारीषा को इसी तरह आगे भी लेखन जारी रखने के लिए प्रेरित किया.

विमोचन कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि पूर्व डीजीपी एएन उपाध्याय ने कहा कि उन्होंने भी कभी स्वांत: सुखाय के लिए लिखा है, लेकिन कविताएं लिखना कोशिश करने से नहीं होता, यह अंतर्मन से निकलने वाले भाव से ही संभव है. उन्होंने कहा कि कविता लिखने के लिए भीतर संवेदना होना जरूरी है. साथ ही लिखने के बाद उसे छपवाने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए होती है. मारीषा ने अपने नाम को चरितार्थ करते रचना की है, और बेटी के प्रयास को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने पिंगुआ परिवार को सराहा.

विशिष्ट अतिथि पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी ने प्रथम कवि पर आधारित सुमित्रानंदन पंत की रचना से अपनी बात शुरू की. इसके बाद मारीषा समा के नाम का अर्थ समझाते हुए कहा कि मारीषा का अर्थ समुद्र होता है, और समा का अर्थ माहौल, जिस तरह से समुद्र के अंतरल गहराइयों में मोती छुपे होते हैं, उसी तरह मारीषा के भीतर भी रचना के मोती हैं. रचनात्मकता ईश्वर प्रदत्त होती है. उन्होंने कहा कि ज्यादातर माता-पिता बच्चों से वह उम्मीद करते हैं, जो वे जीवन में नहीं कर पाए. लेकिन बच्चों की वास्तविक प्रतिभा को निखारने का काम करना चाहिए. मारीषा के प्रयास के लिए उन्होंने अपनी शुभकामनाएं दीं.

कार्यक्रम में मौजूद वरिष्ठ आईएएस व अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू ने कहा कि किसी भी साहित्य रचना के लिए दिमाग में विचार आना जरूरी है. विचार एक चीज है जो अचानक ही आता है और यही वास्तविक है. कोई फिल्म देखकर या किताब पढ़कर आए विचार को लिखना मौलिक लेखन नहीं है. लेकिन मारीषा ने छोटी उम्र में मौलिक लेखन कर बड़ी उपलब्धि हासिल की है.