ओडिशा उच्च न्यायालय (Odisha High Court) ने एक हेबियस कॉर्पस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि नोटरी न तो विवाह पंजीकृत करने के लिए अधिकृत हैं और न ही वे या विवाह प्रमाण पत्र जारी कर सकते हैं. यह पुरी तरह से उनकी कानूनी अधिकार क्षेत्र से बाहर है. नोटरी को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने से बचने के लिए परामर्श देते हुए, न्यायमूर्ति संगम कुमार साहू और न्यायमूर्ति सिबो शंकर मिश्रा की खंडपीठ ने कहा “नोटरी द्वारा इस तरह की अतिरिक्त-कानूनी और छलपूर्ण व्यवस्था के कारण, लोगों को यह विश्वास दिलाया जाता है कि वे कानूनी रूप से विवाहित हैं, जबकि वास्तव में उनकी शादी कानूनी मान्य नहीं है.’
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, ओड़िशा उच्च न्यायालय में एक व्यक्ति द्वारा दायर किए गए हेबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई चल रही थी, जिसने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी को उसके माता-पिता ने अवैध रूप से हिरासत में लिया है और वे उसे अपने पत्नी के साथ रहने की अनुमति नहीं दे रहे हैं.
कोर्ट में याचिकाकर्ता ने अपनी शादी की तस्वीरें, वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कोई दस्तावेज को सबूत पेश किए, इन दस्तवेजों में अदालत ने पाया कि एक विवाह प्रमाणपत्र जिस पर याचिकाकर्ता और लड़की दोनों ने अपने हस्ताक्षर किए थे वह नोटरी के पास बनाई गई थी.
नोटरी अधिनियम, 1952 (1952 का अधिनियम संख्या 53) का, उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि “देश भर के न्यायालयों ने बार-बार इस बात को दोहराया है कि नोटरी न तो विवाह के प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत हैं और न ही वे कानूनी रूप से विवाह की किसी भी हस्ताक्षरित घोषणा को पंजीकृत करने के हकदार हैं. यह स्पष्ट रूप से धारा 8 के तहत निर्धारित उनके कार्यों के दायरे से बाहर है.”
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