महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह, शहीद राजगुरु और शहीद सुखदेव के आज शहादत दिवस है. आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को उन्हें लाहौर शहर में अधिकारी जेपी सॉन्डर्स की हत्या के लिए फांसी दी गई थी. शहीद भगत सिंह क्रांतिकारी के साथ अच्छे पत्रकार भी थे. उनका उत्तर प्रदेश से गहरा नाता रहा है. उन्होंने कानपुर में शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ पत्रकारिता भी की.

शहीद भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले में एक सिख परिवार में हुआ था. भगत सिंह 1924 और 1926 में पंजाब से कानपुर आकर सबसे पहले सुरेशचंद्र भट्टाचार्य से मिले थे. भट्टाचार्य ने भगत सिंह की मुलाकात गणेश शंकर विद्यार्थी से कराई. इसके बाद वह छद्मनाम बलवंत सिंह के नाम से प्रताप प्रेस में पत्रकार के रूप में भी काफी दिनों तक काम किया. इसी के साथ वह आजादी की लड़ाई को लेकर होने वाली बैठकों में भी हिस्सा लेते रहे.

23 साल की उम्र में फांसी

क्रांतिकारी भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंका था और हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था. भगत सिंह की स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ी भूमिका रही. वे क्रांतिकारी के साथ प्रखर पत्रकार और लेखक भी थे, जो अपने विचारों के तेज से देश की देह में हरारत पैदा करते थे. शहीद भगत सिंह को मात्र 23 साल की उम्र में अंग्रेजों ने फांसी दे दी.

शादी से बचने के लिए आए कानपुर

घर के लोग शादी करना चाहते थे इसलिए भगत चुपचाप उत्तरप्रदेश के कानपुर जा पहुंचे थे. महान देशभक्त पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी उन दिनों कानपुर से प्रताप का प्रकाशन करते थे. उन दिनों वे बलवंत सिंह के नाम से प्रताप के संपादकीय विभाग में काम करने लगे. उनके विचारोतेजक लेख प्रताप में छपते. उन्हें पढ़कर लोगों के दिलो-दिमाग में क्रांति की चिंगारी फड़कने लगती. उन्हीं दिनों कलकत्ते से साप्ताहिक मतवाला निकलता था. मतवाला में लिखे उनके दो लेख बेहद चर्चित हुए. एक का शीर्षक था- विश्व प्रेम. 15 और 22 नवंबर 1924 को दो किस्तों में यह लेख प्रकाशित हुआ था.

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प्रताप में भगत सिंह की पत्रकारिता

प्रताप में भगत सिंह की पत्रकारिता को पर लगे. बलवंत सिंह के नाम से छपे इन लेखों ने धूम मचा दी. शुरुआत में तो स्वयं गणेश शंकर विद्यार्थी को पता नहीं था कि असल में बलवंत सिंह कौन है? और एक दिन जब पता चला तो भगत सिंह को उन्होंने गले से लगा लिया. भगत सिंह अब प्रताप के संपादकीय विभाग में काम करते रहे. इन्हीं दिनों दिल्ली में तनाव बढ़ा. दंगे भड़क उठे. विद्यार्थी जी ने भगतसिंह को रिपोर्टिंग के लिए दिल्ली भेजा. विद्यार्थी जी दंगों की निरपेक्ष रिपोर्टिंग चाहते थे. भगतसिंह उनकी उम्मीदों पर खरे उतरे. प्रताप में काम करते हुए उन्होंने महान क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल की आत्मकथा बंदी जीवन का पंजाबी में अनुवाद किया.

पुलिस से बचने के लिए हेडमास्टर के रूप में अलीगढ़ में छिपे

भगत सिंह गणेश शंकर विद्यार्थी के लाडले थे. उनका लिखा एक एक शब्द विद्यार्थी को गर्व से भर देता. ऐसे ही किसी भावुक पल में विद्यार्थी ने भगत सिंह को भारत में क्रांतिकारियों के सिरमौर चंद्रशेखर आजाद से मिलाया. आजादी के दीवाने दो आतिशी क्रांतिकारियों का यह अदभुत मिलन था. भगत सिंह अब क्रांतिकारी गतिविधियों में भरपूर भाग लेने लगे. साथ में पूर्णकालिक पत्रकारिता भी चल रही थी. जब गतिविधियां बढ़ीं तो पुलिस को भी शंका हुई. खुफिया चौकसी और कड़ी कर दी गई. गणेश शंकर विद्यार्थी ने पुलिस से बचने के लिए भगत सिंह को अलीगढ़ जिले के शादीपुर गांव के स्कूल में हेडमास्टर बनाकर भेज दिया.

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पंजाबी पत्रिका किरती के लिए भी रिपोर्टिंग

इसके अलावा भगत सिंह पंजाबी पत्रिका किरती के लिए भी रिपोर्टिंग और लेखन कर रहे थे. किरती में वे विद्रोही के नाम से लिखते थे. दिल्ली से ही प्रकाशित पत्रिका महारथी में भी वो लगातार लिख रहे थे. विद्यार्थी से नियमित संपर्क बना हुआ था. इस कारण प्रताप में भी वो नियमित लेखन कर रहे थे. पंद्रह मार्च 1926 को प्रताप में उनका झन्नाटेदार आलेख प्रकाशित हुआ. एक पंजाबी युवक के नाम से लिखे गए इस आलेख का शीर्षक था- भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का परिचय और उप शीर्षक था.

शहीद भगत सिंह के प्रमुख लेख

शहीद भगत सिंह राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर कलम चलाते रहे. उनके कई लेख लोगों को सोचने को मजबूर कर देते हैं. उनके लेख में यथार्थ और इंसानों के प्रति प्रेम देखने को मिलते हैं. शहीद भगत सिंह के प्रमुख लेख- मैं नास्तिक क्यों हूं, साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज, इंकलाब की तलवार विचारों की शान पर तेज होती है, अछूत समस्या व धर्म और हमारा स्वाधीनता संग्राम शामिल है.

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