माटा चींटी की चटनी सुनने में अजीबों गरीब जरुर लगे पर सच तो ये है कि आदिवासी लोग इसे बड़े चांव से खाते है. बारिश के दिनों में आम, अमरुद और करंज के पेड़ में गुच्छों के रुप में पाए जाने वाली लाल चींटियों से ये चटनी बनाई जाती है. जिसे चापड़ा कहते है. इतना ही नही लाल चींटी का अचार, बड़ी, सब्जी, भुजिया और सूप भी बनाते है.
माटा चटनी से बनने वाली डिश
माटा चींटी स्वाद में इमली से भी कई गुना खट्टी होती है. माटा को साफ करने के बाद लहसुन, काली मिर्च, धनिया मिर्ची डालकर चटनी तैयार की जाती है. वहीं जैसे रखिया बड़ी, मूंग या उड़द की बड़ी बनाई जाती है उसी तरह से ही लाल चींटी की बड़ी भी तैयार की जाती है, उसे सिलबट्टे में पिसकर अन्य सामग्री के साथ गुथते हैं और फिर लड्डू के आकार का बनाकर उसे सूखा दिया जाता है. इसी तरह लाल चींटी का अचार भी आम के आचार की तरह ही बनाया जाता है. टमाटर के सूप की तरह लाल चींटी के चटनी का सूप तैयार किया जाता है.
माटा में औषधीय गुण
जानाकारों के मुताबिक इसमें अनेक औषधीय गुण हैं. यह शरीर में रोग निरोधक क्षमता विकसित करता है. इसके सेवन से आंख की रोशनी बढ़ती है. गर्मी के दिनों में यह लू लगने पर बड़ा उपयोगी है, लू से बचाव भी करता है. चेचक, खांसी, सर्दी, कफ के लिए भी फायदेमंद है.
इस राज्य के लोग अधिक खाते है माटा
- छत्तीसगढ़ के दूरस्थ अंचल वाले इलाके खास करके बस्तर के अबूझमाड़ में इसे खाने वाले अधिक पाए जाते है. बस्तर के आदिवासी ऐसा मानते है कि साधारण बुखार होने पर ग्रामीण पेड़ के नीचे बैठकर चापड़ा लाल चीटियों से स्वयं को कटवाते हैं, इससे ज्वर उतर जाता है.
- झारखंड के विभिन्न सुदूर इलाकों में रहने वाले आदिवासी समाज के लिए यह उनका पसंदीदा खाद्य पदार्थ है. यहा के सिमडेगा के आदिवासियों इन लाल चींटियों को वरदान मानते हैं. यह उनके पारंपरिक व्यंजन में शामिल है.
माटा चींटी का घरौंदा
लाल चिंटिया सरगी वृक्ष की पत्तियों को अपनी लार से चिपका कर घोंसला बना कर रहती है. बरसात के शुरुवाती दिनो में पेड़ के पत्तियो मे एक लाल चींटी का निवास रहता है. प्रायः आम, अमरूद, साल और अन्य ऐसे पेड़ जिनमें मिठास होती है उन पेड़ों पर यह चींटियां अपना घरौंदा बनाती हैं. आदिवासी एक पात्र में चींटियों को एकत्र करते हैं.
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