प्रदीप मालवीय, उज्जैन। उज्जैन शहर से सिर्फ 7 किलोमीटर दूर ‘चिंतामन गणेश’ (Chintaman Ganesh) मंदिर में भगवान श्री गणेश (Lord Shri Ganesh) के तीन रूप एक साथ विराजमान हैं। ये चितांमण गणेश, इच्छामण गणेश (Ichhaman Ganesh) और सिद्धिविनायक (siddhivinayak) के रूप में जाने जाते हैं। श्री चिंताहरण गणेश जी की ऐसी अद्भूत और आलौकिक प्रतिमा देश में कहीं नहीं है। मान्यता है कि माता सीता (Mata Sita) ने चिंताओं को हरने वाले ‘चिंतामन गणेश’ की स्थापना की थी। चिंतामणी गणेश चिंताओं को दूर करते हैं। वहीं इच्छामण गणेश इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। सिद्धिविनायक रिद्धि-सिद्धि प्रदान करते हैं। इसी वजह से दूर-दूर से भक्त यहां खींचे चले आते है। कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे हृदय से ‘चिंतामन गणेश’ के दर्शन करता है। गणपति उसकी सारी चिंता को हर लेते हैं।

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आज से गणेश उत्सव (Ganesh Utsav) की शुरुआत हो गई है। प्रथम पूज्य, मंगलमूर्ति, विघ्न हरने गणपति बप्पा आज से घर – घर विराज गए हैं। ऐसे में गणेश चतुर्थी के इस महापर्व पर उज्जैन के भगवान चिंतामन गणेश मंदिर की कहानी और इतिहास के बारे में कई कहानियां प्रचलित है। उज्जैन का चिंतामन गणेश मंदिर जो कि शहर 7 km दूर है। मंदिर में श्रीगणेश की पूजा चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक के रूप में की जाती है।

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भगवान श्री राम और माता सीता ने की थी प्रथम पूजा
मंदिर के पुजारी गणेश गुरु का कहना है कि मंदिर में विराजे गणेश की प्रथम पूजा भगवान श्री राम (Lord Shri Ram), लक्ष्मण और माता जानकी ने की थी। यह देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पर तीन स्वरूपों में भगवान गणेश की प्रतिमा एक ही पाषाण पर विराजित हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी गणेश गुरु बताते हैं कि त्रेता युग में 14 साल के वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और सीता ने उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे रामघाट पर दशरथ जी का पिंडदान किया था। इसके बाद दक्षिण दिशा में चलते हुए मंदिर के पास आकर वटवृक्ष के नीचे आराम कर ही रहे थे। इसी दौरान सीता मैया के पूजन समय हो गया। वटवृक्ष के पासभगवान चिंतामन, इच्छामन और सिद्धिविनायक की मूर्ति की स्थापना की। इसके बाद तीनों ने प्रथम पूजन किया था। पूजन के दौरान जलाभिषेक करने के लिए जब उन्हें जल नहीं मिला तो लक्ष्मण जी अपने बाण से मंदिर के सामने ही बाणगंगा के रूप में जल को पाताल से जमीन पर ले आए। इसीलिए यहां पर बावड़ी का नाम बाणगंगा और लक्ष्मण बावड़ी है।

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मनोकामना के लिए बनाते हैं उल्टा स्वास्तिक

भगवान गणेश के तीन रुपों के एक साथ दर्शन करने देश के कोने-कोने से भक्त यहां आते हैं। यहां पर भक्त, गणेश जी के दर्शन कर मंदिर के पीछे उल्टा स्वास्तिक बनाकर मनोकामना मांगते हैं। जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वह पुनः दर्शन करने आते हैं और मंदिर के पीछे सीधा स्वास्तिक बनाता है। कई भक्त यहां रक्षा सूत्र बांधते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर रक्षा सूत्र छोड़ने आते हैं।

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