Mathura Lok Sabha Elections 2024: दिल्ली. भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा की लोकसभा सीट का मिजाज भी उन्हीं की तरह चंचल रहा है. आजाद भारत में जब पहली बार लोकसभा चुनाव हुए, तो इस सीट ने नेहरू लहर के बावजूद निर्दलीय उम्मीदवार राजा गिरराज शरण सिंह को विजयी बनाया. 1957 में फिर निर्दलीय उम्मीदवार राजा महेंद्र प्रताप जीते.
1957 में तीन जगह से लड़े थे अटल
अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार 1952 में लखनऊ लोकसभा सीट में हो रहे उपचुनाव में उतरे थे, लेकिन खाते में हार आई. 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया था.
मथुरा का रोचक सियासी सफर
मथुरा को शुरुआती दौर से ही जाट बहुल सीट माना जाता है. इसकी सच्चाई यूं भी समझी जा सकती है कि अब तक चुने गए 17 सांसदों में से 14 जाट समुदाय से आते हैं. हालांकि एक और सच्चाई यह भी है कि जाट बिरादरी का प्रतिनिधित्व करने वाली आरएलडी कभी इसे अपना किला नहीं बना सकी. यह बात और है कि यहां से 2009 में जयंत चौधरी सांसद चुने गए थे. हालांकि तब आरएलडी भाजपा के साथ गठबंधन में थी और यह सीट उसी गठबंधन की वजह से आरएलडी के खाते में आई थी. इस सीट से चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती भी चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया था.
मथुरा में मिले सिर्फ 10% वोट
1957 में मथुरा में वाजपेयी के सामने कांग्रेस से चौधरी दिगंबर सिंह और सोशलिस्ट पार्टी के राजा महेंद्र प्रताप सिंह भी चुनाव लड़ रहे थे. वाजपेयी के समर्थन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख ने एक दिन में 14-14 सभाएं की. इसके बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी हार गए. उन्हें राजा महेंद्र प्रताप सिंह के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा. अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त हो गई थी. उन्हें महज 10 फीसदी वोट ही मिले थे.