अभय मिश्रा, मऊगंज। मध्य प्रदेश के मऊगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की लापरवाही का एक और चौंकाने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। जिसमें एक प्रसव पीड़िता महिला को ठेले पर अस्पताल लाया गया, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि उसे हॉस्पिटल के मुख्य द्वार पर ही कई मिनटों तक तड़पते हुए इंतजार करना पड़ा। न किसी अटेंडर ने मदद की, न डॉक्टर ने देखा और न ही स्ट्रेचर उपलब्ध कराया गया।

स्वास्थ्य विभाग के नियमों के अनुसार प्रसव पीड़ा को इमरजेंसी केस माना जाता है और ऐसी स्थिति में अटेंडर की जिम्मेदारी होती है कि प्रसव पीड़िता को तत्काल लेबर रूम पहुंचाया जाए। लेकिन मऊगंज अस्पताल में जो दृश्य सामने आया उसने स्वास्थ्य व्यवस्था की संवेदनहीनता और भ्रष्ट सिस्टम की पोल खोल दी है। परिजनों ने काफी देर तक सहायता की गुहार लगाई, लेकिन जब कोई नहीं आया तो वे स्वयं स्ट्रेचर उठाकर महिला को लेबर रूम तक लेकर गए। इस दौरान महिला ठेले पर ही दर्द से कराहती रही और परिजन परेशान होकर मदद मांगते रहे।

सरकारी योजनाओं की खुली पोल

मध्यप्रदेश सरकार की जननी सुरक्षा योजना (JSSK) और जननी एक्सप्रेस योजना (JES) के तहत प्रत्येक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा की स्थिति में निःशुल्क एंबुलेंस सुविधा और सुरक्षित प्रसव की गारंटी दी गई है। नियमों के अनुसार कॉल के 30 मिनट के भीतर एंबुलेंस पहुंचना अनिवार्य है, लेकिन मऊगंज में यह सुविधा केवल कागजों में सीमित है।

स्वास्थ्यकर्मियों की जिम्मेदारी तय

स्वास्थ्य विभाग के दिशा-निर्देशों के अनुसार, आशा कार्यकर्ता, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को गर्भवती महिला की निगरानी, जांच और पोषण की व्यवस्था करनी होती है। वहीं ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (BMO) की जिम्मेदारी होती है कि कोई भी महिला ठेले या पैदल अस्पताल न आए। लेकिन इस घटना ने दिखा दिया कि न तो स्वास्थ्यकर्मियों ने अपना दायित्व निभाया, न ही बीएमओ ने निगरानी की।

प्रशासनिक लापरवाही और सिस्टम की नाकामी

स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि प्रत्येक ब्लॉक में गर्भवती महिलाओं की सूची तैयार होती है और प्रशासन उन पर निगरानी रखता है, ऐसे में यह कहना कि “महिला की जानकारी नहीं थी” सरासर गलत है। यह लापरवाही राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और JSSK के नियमों का उल्लंघन है। हाल ही में मऊगंज अस्पताल की लापरवाही से एक नवजात की मौत भी हुई थी, फिर भी विभाग की चुप्पी सवाल खड़े करती है, आखिर इन लापरवाह कर्मियों को संरक्षण कौन दे रहा है?

बीएमओ की नियुक्ति पर सवाल

मऊगंज अस्पताल के वर्तमान बीएमओ की नियुक्ति पर भी सवाल उठ रहे हैं। सूत्रों के अनुसार यह नियुक्ति नियम विरुद्ध तरीके से की गई है। लगातार हो रही घटनाएं कभी नवजात की मौत, कभी महिला की असहाय स्थिति प्रशासनिक मिलीभगत की ओर इशारा करती हैं।

विधायक की मुख्यमंत्री से शिकायत

भाजपा विधायक नागेंद्र सिंह ने भी इस मामले में मुख्यमंत्री से शिकायत की है। उन्होंने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMHO) पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि स्वास्थ्य विभाग में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं और मनमानी चल रही हैं। अनुभवहीन अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया गया है, जिससे जनसेवा प्रभावित हो रही है।

बड़ा सवाल

कब तक गर्भवती महिलाओं को ठेले पर अस्पताल ले जाया जाएगा ? कब तक झूठी जांच रिपोर्टों से जिम्मेदारों को बचाया जाएगा ? कब तक मऊगंज की स्वास्थ्य व्यवस्था गर्भवती महिलाओं की जान से खेलती रहेगी ? यह घटना केवल एक वीडियो नहीं, बल्कि मऊगंज स्वास्थ्य व्यवस्था की असल तस्वीर है। जहां संवेदना खत्म हो चुकी है और जिम्मेदारी सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई है।

मऊगंज ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर को आखिर किसके इशारे पर बचाया जा रहा है ? क्या उनकी नियुक्ति नियम विरुद्ध तरीके से कर जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है ? अस्पताल में बेडशीट तक नहीं हैं, भ्रष्टाचार का आलम फैला हुआ है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या यह सब प्रायोजित लापरवाही है या फिर नियमों की खुली धज्जियां उड़ाई जा रही हैं ?

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