अभय मिश्रा, मऊगंज। मऊगंज जिले के नईगढ़ी थाना प्रभारी जगदीश सिंह ठाकुर की कार्यशैली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। तीन साल से न्याय के लिए भटक रहे पीड़ित अंशु द्विवेदी के मामले में पुलिसकर्मियों पर जांच के दौरान आरोप सिद्ध पाए जाने के बावजूद आज तक किसी भी अधिकारी ने कार्यवाही नहीं की, जबकि शिकायतें पुलिस विभाग के लगभग सभी वरिष्ठ अधिकारियों मुख्यमंत्री और गृहमंत्री, कलेक्टर, DGP, IG, SP, तक पहुंच चुकी हैं।
पीड़ित का आरोप- थाने बुलाकर की बेरहमी से मारपीट
पीड़ित अंशु द्विवेदी का कहना है कि उसका पुश्तैनी जमीन विवाद हिंछलाल नामक व्यक्ति से वर्षों से चला आ रहा है। जिसका पुत्र भोपाल पुलिस बल में पदस्थ है। आरोप है कि पुलिसकर्मी ने नईगढ़ी थाना प्रभारी जगदीश सिंह ठाकुर को फोन कर दबाव डलवाया, जिसके बाद थाना प्रभारी ने षड्यंत्रपूर्वक उसे थाने बुलाया।
पीड़ित के अनुसार, शाम 7:30 बजे थाने पहुंचते ही थाना प्रभारी जगदीश सिंह ठाकुर ने गाली-गलौज शुरू कर दी और बिना किसी अपराध मुझे लॉकअप में डाल दिया। बाद में पीछे के कमरे में ले जाकर डंडे और पाइप से पूरी रात बेरहमी से पीटा गया। पीड़ित के शरीर के हाथ, पैर, घुटनों, तलवों और पीठ पर गंभीर चोटें आईं। जब उसने विरोध किया, तो थाना प्रभारी ने धमकी दी कि तुमने मेरे पुलिस बल के घरवालों को परेशान किया है, इसलिए ये हाल किया है। अगर शिकायत की तो गांजे के केस में फंसा दूंगा। पीड़ित को रात 1 बजे छोड़ा गया, जब तक गांव के सरपंच और ग्रामीण थाने पहुंचकर हंगामा नहीं करने लगे।
SDOP की जांच रिपोर्ट में दोषी पाए गए पुलिसकर्मी, फिर भी कार्रवाई नहीं
घटना की शिकायत पर पुलिस अधीक्षक रीवा ने जांच एसडीओपी मनगवां को सौंपी। जांच में पीड़ित का मेडिकल कराया गया, जिसमें हार्ड व ब्लंट ऑब्जेक्ट से आई चोटें स्पष्ट पाई गईं। गवाहों के बयान में भी थाना प्रभारी, आरक्षक वीरभद्र सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों के मारपीट की पुष्टि हुई। एसडीओपी मनगवां ने अपनी रिपोर्ट SP रीवा को सौंप दी, जिसमें आरोप सिद्ध पाए गए। फिर भी दोषी थाना प्रभारी और संबंधित पुलिसकर्मियों पर किसी प्रकार की विभागीय या कानूनी कार्रवाई नहीं की गई।
तीन वर्षों से न्याय के लिए भटक रहा पीड़ित
पीड़ित ने लल्लूराम डॉट कॉम को बताया है कि अब तक कई शिकायतों के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है। मेरे द्वारा 5 बार CM हेल्पलाइन पर, SP रीवा, IG रीवा, कलेक्टर मऊगंज, DGP भोपाल और मुख्यमंत्री व गृह मंत्री तक जाकर शिकायते की जा चुकी है। इसके बावजूद तीन वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन न तो दोषी पुलिसकर्मियों पर कोई कार्रवाई हुई, न पीड़ित को न्याय मिला। क्योंकि थाना प्रभारी को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।
राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक मौन पर सवाल पीड़ित अंशु द्विवेदी का कहना है कि थाना प्रभारी को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। हमने हर स्तर पर शिकायत की, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। राजनीति के दबाव में थाना प्रभारी को बचाया जा रहा है। गौरतलब है कि इसी थाना प्रभारी पर पहले भी फर्जी मुकदमे दर्ज करने के आरोप लग चुके हैं। मिथिलेश त्रिपाठी नामक व्यक्ति ने इनके खिलाफ आमरण अनशन तक किया था, लेकिन तब भी विभाग ने चुप्पी साधे रखी।
अब सवाल सीधा है…
जब जांच में थाना प्रभारी और आरक्षक दोषी पाए गए, तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई ? क्या पुलिस विभाग में वर्दी वालों के लिए अलग न्याय व्यवस्था है ? अगर आम नागरिक होता तो क्या अब तक जेल के पीछे नहीं होता ? क्या दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने की साजिश चल रही है ? लल्लूराम डॉट कॉम ने जब इस मामले पर SP मऊगंज से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि मामले की जांच कराई जा रही है, लेकिन तीन साल से न्याय की आस लगाए बैठे पीड़ित के लिए यह जवाब अब औपचारिक बयान मात्र बन चुका है।
न्याय की प्रतीक्षा में आम आदमी, मौन में सिस्टम यह पूरा मामला केवल एक व्यक्ति की पीड़ा नहीं, बल्कि पुलिस कार्यप्रणाली और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गहरा सवाल खड़ा करता है। जब जांच में दोष सिद्ध होने के बाद भी कार्रवाई नहीं होती, तो यह सीधे-सीधे कानून की समानता के सिद्धांत का अपमान है। क्या मऊगंज में वर्दी की आड़ में अन्याय की यह कहानी अब भी यूं ही जारी रहेगी या कभी कानून वास्तव में सबके लिए समान साबित होगा ?

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